विमन प्राइड
सुश्री बबली गंभीर
फैशन सेलिब्रिटी
संस्थापक – शीन ब्यूटी क्लिनिक
1 अंतरराष्ट्रीय और 14 राष्ट्रीय पुरस्कारों
से सम्मानित शख्सियत
जावरा, रतलाम
स्वयं को व्यवस्थित और सुन्दर रखना मेरा पहला शौक है
आप एक उच्च शिक्षित प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की मालकिन हैं, हमारे पाठक आपकी शैक्षिक उपलब्धियों के बारे में जानना चाहेंगे?
मेरी प्रारंभिक शिक्षा केन्द्रीय विद्यालय (बाल्को) बिलासपुर, छत्तीसगढ़ से एमए, इंग्लिश साहित्य (आर्ट एवं साइंस कॉलेज रतलाम) भारत के विभिन्न राज्यों से त्वचा, बाल, मेकअप की मास्टर्स की ट्रेनिंग मैंने ली है।
दिव्यांग (दोनों असमान्य हाथ) के बाद भी आप ने ब्यूटी के क्षेत्र में अपना नाम स्थापित किया है, अपनी शारिरिक कमी के बावज़ूद ब्यूटीशियन बनने का जज़्बा आपमें कैसे आया?
कमजोरी को ताकत बनाने की जिद, जुनून था। मुझे नकारने वाले, इंसान कौन होते हैं? ईश्वर की हर रचना सुन्दर हैं। लोगों ने सर्वोच्च सत्ता को चुनौती दे दी। वे स्वयं आ गए मेरा हाथ पकडऩे! और फिर डार्विन की थ्योरी भी तो है- ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट। ‘
हमें अपने पेशेवर करियर के शुरुआती दौर से लेकर शीन ब्यूटी क्लिनिक के संस्थापक होने तक की अपनी सफलता की कहानी बताएं, सफलता के इस दौर में कैसी चुनौतियाँ आपके समक्ष थीं?
जब कोई शारीरिक दोष के साथ जन्म लेता है, तो या तो वह व्यक्ति विध्वंसात्मक, नकारात्मक हो जाता है, या डिप्रेशन में जाकर अपना अस्तितव समाप्त कर देता है। पर मेरे साथ इसका विपरीत हुआ। मेरे स्व. पिता का सर्वप्रथम जिक्र करूंगी, जिन्होंने जीवन के प्रति मेरा प्रेम जगाया। क्योंकि मेरे जन्म लेते ही, मुझे मृत्यु की गोद में सुलाने के लिए उनके मित्र तत्पर थे कि मुझे जहर का इंजेक्शन लगा दिया जाए। पर मेरे पिता ने इस क्रूर व्यक्ति को अपने जीवन से झटक दिया और मुझे गले से लगा लिया। 7 वर्ष तक उन्होंने लावे की तरह खौलता पुरुपषार्थ मुझमें जगाया और फिर अचानक एक दिन वे मुझे इस निर्मम संसार में बिलकुल अकेला छोड़ गए। मेरी उस उम्र के बच्चों के जीवन में गुडिय़ा, खिलौने, चाकलेट, रूठना, मनाना, जिद, हंसना, खिलखिलाना यह सब होता है पर मेरी दुनिया सन्नाटे में, डर में, हेय दृष्टि में, नकारा, बोझ में चली गई थी। मैं सिर्फ हंसी का पात्र थी। बड़े भैया के पास बिलासपुर केन्द्रीय विद्यालय भेजा गया, तिगुने टार्चर के लिए आर्थिक, शारीरिक, मानसिक! पर वहां मैंने सीसीए कक्षाओं से कला सीखी। ड्राइंग, पेंटिंग, डांसिंग इत्यादि। फिर किन्ही कारणों से वापस आना पड़ा अपने जन्मस्थल। ”जावरा” से प्रारंभ होती है- मेरी सशक्त यात्रा की कहानी। मेरी बड़ी बहन का मजबूत वजूद मेरे पीछे खड़ा होगा। ग्रेजुएशन के बाद पीजी किया। इंग्लिश साहित्य में, हर क्लास में फस्र्ट डिविजन हासिल किया। अब समय था, कैरियर चुनने का। सरकारी नौकरी मिली यूडीटी की, पर मुझे कतई मंजूर नहीं था क्योंकि मेरे 2 हाथ जो मेरे हथियार बनने वाले थे, उनका कोई उपयोग नहीं होता। एक नया इतिहास बनने को था… एक दिन एक सेलून में मेरा जाना हुआ। किसी के साथ हर कार्य सधे हाथों से सावधानी से हो रहा था वहां… बिजलियां कौंध गई मेरे दिमाग में। इस इसी दिन मैंने ठान लिया पूरी दुनिया से 2-2 हाथ करने का। ब्यूटी इंडस्ट्री में अपने मजबूत कदम रखे। भारत के सौंदर्य क्षेत्र के दिग्गजों से सौंदर्य की शिक्षा लेकर अपने नन्हें, प्यारे से हाथों के साथ- ”गर्ल विथ गोल्डन हैण्ड्स” का खिताब लेकर प्रारंभ किया- ”कुरूप दुनिया” को ”सुन्दर” बनाने का सफर!!!
अपने शहर में एक सेलिब्रिटी ब्यूटीशियन के रूप में सामाजिक कार्य के लिए आपने अपनी क्या प्राथमिकताएं तय की हैं?
मेरे चारों तरफ ”ना” या ”असंभव” जैसा कुछ भी नहीं। यदि कोई महिला या बच्ची आती है कि उसे प्रताडि़त किया जा रहा है या उसके भरण-पोषण की स्थिति नहीं है, तब उस अवस्था में जहां तक मेरा सामर्थ होता है, मैं उसे हुनरमंद बनाती हूं। जिससे वह आत्मनिर्भर हो जाए। स्वयं को सदैव एक सशक्त महिला के रूप में प्रस्तुत होने की शपथ के साथ अपनी कर्मस्थली ”शीन” पर प्रतिदिन महिलाओं की समस्याएं सुनने के बाद उनकी स्वयं की शक्ति से परिचित करवाना मेरी प्राथमिकता होती है।
आप अपने पेशेवर काम और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के प्रबंधन के लिए अपनी शारीरिक दिक्कतों के बीच समन्वय कैसे करती हैं?
शारीरिक दिक्कत अब है ही कहां? इसे तो अरसा हो गया हराए हुए! स्वयं को व्यवस्थित और सुन्दर रखना मेरा पहला शौक है, क्योंकि ”बबली गंभीर” मेरी बेशकीमती शख्सियत है जिसे मैंने बहुत तूफानों दलदलों, ज्वालामुखियों से जूझकर बनाया है। उसके बाद अपने प्रोफेशन को मैं अपनी प्रार्थना, पूजा मानती हूं, उसके लिए कोई अतिरिक्त प्रयास करना ही कहां होता है? वह तो आत्मा है!
कौन सा समाज? मैं जिस धर्म से हूं (सिख) उस समय के प्रमुख थे मेरे स्व. पिता! आदरणीय महामहिम राष्ट्रपति महोदय से सम्मानित होने के बाद अपने समाज की उस बेटी जिसने उन्हें गौरव के पल दिए जो दिव्यांग होने के बाद भी उनकी मदद मांगने नहीं आई कभी! उसकी उपलब्धि पर एक फूल तक नहीं था, बेचारों के पास! तो लानत है ऐसे अस्तित्वों पर! खुद को कहीं ऊपर रखती हूं मैं ऐसे पंगु समाज से! मानसिक दिव्यांग होता है ऐसा समाज। शुक्रिया उन सभी का, क्योंकि उनकी इस उपेक्षा ने मुझे अपने सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित किया। अपनी आजीविका कमाई! बहुत खुश हूं कि मेरे शीर्ष पर स्थापित होने का श्रेय समाज नहीं ले सकता।वित्तीय समस्याओं का सामना कर रही प्रतिभाशाली लड़कियां ब्यूटीशियन बनने के लिए समर्थन और मार्गदर्शन के लिए आपसे कैसे संपर्क कर सकती हैं?
जो भी लड़की, जो प्रतिभाशाली है, और उसे मार्ग नहीं मिल रहा, मेरे नं. (9755310044) पर मुझसे संपर्क करें, यथासंभव सहायता (हुनर के रूप में) मैं दूंगी। इंटरव्यू के माध्यम से यदि कोई मुझे जान रहा हो तो कोई संस्था- वे कैम्प लगाएं, प्रशिक्षण मैं दूंगी, फ्री।
आप उन महिलाओं के लिए महिला सशक्तिकरण को कैसे परिभाषित करना चाहेंगी जो शारीरिक रूप से असमान्य हैं?
शक्ति ईश्वर प्रदत्त है। उसे सिर्फ जगाने की आवश्यकता होती है स्वयं। कोई भी आपका नहीं जगा सकता। आपकी इच्छा शक्ति सबसे महत्वपूर्ण है। आपको सबसे ज्यादा स्वयं से प्यार करना होगा, आप स्वयं का आदर करें, स्वयं को सबसे सकारात्मक मानें, फिर देखिए दुनिया कैसे आपका अनुसरण करेगी।
आपके पेशेवर करियर में सब से ज़्यादा किसने आपको प्रोत्साहित किया और हर कदम साथ दिया?
मेरी बड़ी बहन ”बलजीत कौर” जी ने।
आप स्वभाव से अंतर्मुखी हैं या बहिर्मुखी हैं?
एकदम! बहिर्मुखी! निडर, बेबाक, जोश, परन्तु होश से भरी।
व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में कठिन परिस्थितियों को आप किस रूप में स्वीकार करती हैं?
व्यक्तिगत जीवन खुली किताब है, विवाह नहीं किया, इसलिए सारा ध्यान अपने कैरियर पर केन्द्रित है। कोई मोह बंधन, कर्मबंधन नहीं है।
अक्सर सृजनात्मकता और समाज सेवा के क्षेत्र में कुछ आलोचनाएँ भी होती हैं, अपनी आलोचनाओं के प्रति आपका क्या नज़रिया रहता है?
जो व्यक्ति आत्मविश्वास से लबरेज होता है, वह सदैव दूसरे की प्रशंसा से बात प्रारंभ करता है… और जो हीन भावना से ग्रसित है वह स्वयं की प्रशंसा से! ईश्वर की अनुकम्पा सदैव मेरे अस्तित्व पर थी तो आत्मविश्वास के सिवाय मेरे पास कुछ और था ही कहां? इसलिए आलोचनाओं से हतोत्साहित या प्रभावित होने की गुंजाइश मेरे पास कभी नहीं थी। मेरा पूरा ध्यान केवल अपने लक्ष्य पर रहा, वो था- मेरे स्व. पिता के ”सपने” जो विरासत में मिले थे मुझे!!! मेरा पहला और अंतिम ध्येय है।
आप अपने जीवन में किससे सबसे अधिक प्रेरित हुईं?
अपने स्व. पिता ”श्री इकबाल सिंह गंभीर” जी से।
आपने अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते हैं। इन पुरस्कारों का आपके जीवन में क्या महत्व है?
कुल 15 पुरस्कार।
राष्ट्रीय और 1 अंतरराष्ट्रीय। एक-एक पुरस्कार मेरे मन-प्राण में बसता है। कीचड़ में थी मैं, निरीह… गरीब परिवार में जन्म, रेंगते हुए घटनों पर आई, फिर खड़ी हुई, फिर चली, फिर दौड़ी, फिर छलांग लगाई… अपने हर पारितोषिक की सच्ची हकदार हूं मैं!!! क्योंकि यह मेरी तीन अंगुलियों की कमाई हुई दौलत है। एक गुमनाम नकारा जीवन की ईश्वर ने हीरे-मोती में जड़कर एक नाम बनाया- ”बबली गंभीर” और ”शीन” हूं ना मैं ”क्वीन ऑफ शीन”।
आप हमेशा फिट और एनर्जेटिक रहती हैं, यह कैसे संभव हो पाता है?
अपनी दिनचर्या, सुव्यविस्थत, नियंत्रित रखती हूं, नियमित व्यायाम के साथ, उचित आहार और सप्ताह में 3 दिन अपने सेलून से निवास स्थान जो कि लगभग 4 किमी है, पैदल जाती हूं। सकारात्मक सोच, दुनिया से बेपरवाह! और स्वयं से ”बेपनाह प्रेम” मेरी ऊर्जा को हजारों गुना बढ़ा देता है।
चाणक्य कहते हैं-
इंसान पैदा होता है बिना नाम के-
और जाता है एक नाम के साथ
वह नाम एक ”इतिहास” होना चाहिए!!!