फिल्ममेकर और एडमेक इंडिया प्रायवेट लिमिटेड के संस्थापक आदित्य रानोलिया से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत
आदित्य जी, आपके कैरियर के पहले पड़ाव के बारे में आपसे जानना चाहेंगे। आपको यह कब लगा कि सिनेमा के क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाना है?
कोई भी सफर किसी मकसद से ही शुरू होता है। बचपन से ही सृजनात्मक गतिविधियों में मेरी रुचि थी। पढ़ाई के शुरूआती दिनों में क्रिएटिव कामों में काफी सक्रिय रहता था। मैंने बीएससी की पढ़ाई करने के बाद अपनी क्रिएटिविटी का दायरा विशाल करने के उद्देश्य से मॉस कम्युनिकेशन की पढ़ाई की। मास कम्युनिकेशन की शिक्षा के दौरान मैंने क्रिएटिविटी के विविध आयामों को बहुत बारीकी से सीखा। मैं कार्टून बहुत अच्छे से स्कैच करता था। मैंने सोचा अपनी इस कला का इस्तेमाल अपना कैरियर शुरू करने के लिए करना चाहिए। इसी क्रम में मैंने हिन्दी दैनिक अखबार ‘दैनिक जागरण” में कार्टूनिस्ट के रूप में काम करना शुरू किया। वहां दो-तीन वर्ष कार्टून, कैरिकेचर बनाने के बाद मुझे यह लगा कि इसके अलावा भी मुझे कुछ करना है जिससे मेरे टैलेंट को एक अलग पहचान मिल सके। मेरे अर्न्तमन में सिनेमा का जो आकर्षण था वे मुझे इस क्षेत्र में कुछ करने के लिए हमेशा पुकारता था। मैंने अपने अर्न्तमन की इस पुकार का सम्मान किया और हिसार में दैनिक जागरण की अपनी नौकरी छोड़कर दिल्ली आ गया और यहाँ फिल्म मेकिंग की बारीकियों को सीखने के लिए कुछ मीडिया हाउस में काम किया। मीडिया हाउस में काम करते हुए मुझे यहां और आगे बढ़ने की संभावनाएं नज़र नहीं आई। फिल्म मेकिंग को अपनी कर्मभूमि बनाने के लिए मुंबई आ गया। यहां कला का समुंदर है जो अपने अंदर सबको समा लेता है बस मुंबई में काम करने का हौसला और काम के लिए समर्पण होना चाहिए। मुझे पता था कि मेरी राह इतनी आसान नहीं है पर कहीं न कहीं यह आत्मविश्वास भी था कि जीवन में कुछ हासिल करना ही है।
जैसा कि आपने कहा, सफलता की राह आपके लिए आसान नहीं थी। मुंबई आने के बाद किन चुनौतियों का सामना आपको करना पड़ा।
मुंबई आने के बाद मेरे सामने नित-नई चुनौतियां थी। सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि मुंम्बई से वापस नहीं जाना है। ऐसा कहा जाता है कि मुंबई आने के बाद चार-पांच वर्षों तक आपने स्ट्रगल नहीं किया तो यह शहर आपको नकार देगा। सबसे पहले मुंबई में मेरे लिए रोज़ी-रोटी का स्ट्रगल था। काफी भटकने के बाद एकता कपूर के एक प्रोजेक्ट में मुझे काम मिला ‘कसम से’ सीरियल में वह भी सिर्फ एक दिन के लिए सहायक निर्देशक के रूप में। यह काम मेरे कैरियर के लिए एक नन्हा पौधा था। यह एक दिन मेरे लिए एक साल के बराबर था। यही एक दिन का काम मुंबई में मेरे कैरियर का आधार बना। मुंबई में अपने लिए काम ढूंढ लेना ही बहुत बड़ी बात होती है,जब आप अपने सफर में अकेले हो और आपका साथ देने वाला कोई न हो। इस एक दिन के काम की खुशी मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगी। इस एक दिन के काम में मैंने फिल्म इंडस्ट्री का कल्चर देखा जिससे मेरे काम को एक सही दिशा मिली।
ऐसा कहा जाता है कि बिना स्ट्रगल की सफलता का कोई मूल्य नहीं होता। आपने अपने जीवन के स्ट्रगल को किस रूप में स्वीकारा?
अपने जीवन में स्ट्रगल को मैंने कभी नकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखा। मेरी नजर में स्ट्रगल एक पैशन है। स्ट्रगल मेरे लिए एक लगन है। स्ट्रगल का यह मतलब नहीं है कि जो काम मिले वह करते रहिए बिना मन की तसल्ली के। अपनी कामयाबी के रास्ते आपको खुद तय करने होंगे। अपना काम करने की आपकी नीयत है और अपने काम के प्रति समर्पण है तो स्ट्रगल आपके लिए आसान होगा। मुंबई में किस्मत को आजमाने के लिए लाखों लोग आते हैं। किस्मत को आजमाना नहीं होता, किस्मत को पाना होता है। किस्मत को पाने के लिए काम करिए, आजमाने के लिए नहीं।
फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा कौन सा प्रोजेक्ट था जिसने आपको यहां स्थापित किया?
मुंबई आने के बाद फिल्म मेकिंग के प्रति मेरी रुचि बढ़ी। फिल्म मेकिंग के मकसद से ही मैं यहां आया था। अपने कैरियर के एक पड़ाव में मुझे सेट डिजाइनिंग का काम करना पड़ा। यह मेरा सौभाग्य रहा कि सेट डिजाइनिंग में मुझे बड़ी-बड़ी फिल्में मिली है और मुझे अपना टैलेंट दिखाने का मौका मिला। सेट डिजाइनिंग में काम करने से मुझे अपनी कलात्मकता दिखाने के लिए बड़ा कैनवास मिला। सेट डिजाइनिंग के क्षेत्र में मुझे एक अच्छी पहचान मिली और बड़े निर्देशकों ने मेरे काम को स्वीकारा और अपनी फिल्मों के लिए मौका दिया। इनमें संजय लीला भंसाली, करण जौहर, यश चोपड़ा, राजकुमार हीरानी, विधु विनोद चोपड़ा, साजिद नाडियाडवाला जैसी बड़ी हस्तियों के नाम शामिल हैं। सेट डिजायनिंग भी एक तरह फिल्म निर्माण जैसा ही है, इन बड़ी हस्तियों के साथ काम करने का अनुभव और एक्सपोजर से फिल्म मेकिंग के प्रति मेरी रुचि और प्रबल हो गई। मैंने यह तय किया कि अपने कैरियर का अगला पड़ाव फिल्म मेकिंग है जिससे अपनी फिल्मों को समाज को एक अच्छे मैसेज दे संकूं और सिनेमा जैसे सशक्त माध्यम को सार्थक कर सकूं।
अपनी फिल्म ‘द लाॅस्ट गर्ल” आपने निर्मित की है। यह नाम एक जिज्ञासा पैदा करता है। इस फिल्म के बारे में कुछ बताइये?
जब भी मैं कोई मार्मिक घटना को सुनता हूं तो बहुत संवेदनशील हो जाता हूं। लोगों के जीवन को जब बारीकियों से देखता हूं तो बहुत ही भावनात्मक हो जाता हूं। मुझे हमेशा यह लगता है कि मार्मिक घटनाओं के दर्द को सिनेमा के माध्यम से लोगों को दिखा सकूं जिसमें समाज के लिए एक सकारात्मक सन्देश भी हो। हमारे देश में जब किसी भी अप्रत्याशित कारण से उन्माद पैदा हो जाता है दंगे का रूप ले लेता है जिससे निर्दोष लोग मारे जाते हैं, लोग बेघर हो जाते हैं, हजारों इंसानों की जिंदगी तबाह हो जाती है। जिसके साथ ऐसी अप्रिय घटनाएं होती है उसका दर्द वही महसूस कर सकते हैं। “द लाॅस्ट गर्ल” की कहानी 1984 में हुए दंगों पर केन्द्रित है। इसमें हमने एक बच्ची की कहानी को दर्शाया हैा जिसका परिवार दंगों का शिकार हो जाता है और वह अकेले रह जाती है। उस लड़की के जीवन की तमाम कठिनाईयां और उसके जीवन में होने वाली घटनाओं के साथ उस लड़की के हार न मानने वाले स्वभाव और उसके मकसद के बारे में इस फिल्म में दिखाया गया है। आपने सही कहा कि इस फिल्म का नाम एक जिज्ञासा पैदा करता है और यही जिज्ञासा दर्शकों को फिल्म के अंत तक बांधकर रखेगी।
इस फिल्म की शूटिंग आपने अपने गृह ग्राम हरियाणा में फिल्माया है। इसके पीछे क्या कारण थे?
सन् 1984 में जो दंगे हुए थे उनसे यह क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ था। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में इस दंगे के खौफनाक मंजर को लोगों ने देखा और आज भी उस खौफ को लोग महसूस करते हैं। लोगों के जीवन का दर्द बचपन से मेरे अंदर था। पापा से इस घटना के बारे में सुनता था। मेरे दिल के अंदर एक टीस थी कि मैं इसको लिख पाऊ अैार सिनेमा के माध्यम से इसे दर्शा सकूं। मैंने यहां की लोकेशन्स पर इसलिए शूटिंग की ताकि हम इसे रीयलिस्टिक बना सके। हमारी फिल्म कहीं भी नाटकीय न लगे। हरियाणा और दिल्ली को मैंने चुना जहां उसी तरह का स्ट्रक्चर मौजूद है। फिल्म देखते वक्त दर्शक इसे रियल महसूस कर सके। हमारी फिल्म की सारी लोकेशन्स रीयलिस्टिक हैं।
अपनी इस फिल्म की शूटिंग के दौरान कलाकारों में किस तरह की फिलिंग्स आपने देखी?
हमारी फिल्म के कलाकारों ने कहानी और पटकथा को बड़ी गंभीरता से समझ लिया था। मैं यह कह सकता हूं कि इस फिल्म के सारे कलाकारों ने अपने-अपने पात्रों को अभिनीत ही नहीं किया बल्कि उसे जीया है। सारे कलाकार अपने अपने पात्रों में समाहित हो गए थे। इस फिल्म में स्वाभिकता लाने के लिए हरियाणा के कलाकारों को हमने मौका दिया है। फिल्म की कहानी लिखते समय ही मैंने यह तय कर लिया था कि इसमें सारे करैक्टर रियल होंगे। फिल्म में सारे कलाकारों ने मेरी अपेक्षा अनुसार काम किया है। इस फिल्म की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कोई सैट नहीं लगाया गया है। सारी शूटिंग रियल लोकेशन्स पर हुई और कलाकारो ने इसमें अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन दिया है। इसमें कहीं भी नाटकीयता का पुट नहीं है, हमारी फ़िल्म की स्वाभाविकता ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है।
अपनी फिल्म “द लाॅस्ट गर्ल” कलात्मक फिल्म मानते हैं या कामर्शियल?
यह एक कलात्मक फिल्म है और फैमिली ड्रामा है। एक फैमिली जब किसी बड़े संकट की वजह से पलायन करती है तो उनकी भावनाएं बहुत आहत होती हैं। एक टीस,एक दर्द हमेशा के लिए उनके अंदर समा जाता है।यह फ़िल्म उनके इस दर्द को दर्शाती है। दंगों के कारण जब एक परिवार में सिर्फ एक बच्ची रह जाती है, अपने आप को असहाय पाती है उसके अन्तर्मन की गहरी पीड़ा होती है। अपनी विषम परिस्थितियों से वह कैसे जूझती है और अपना आगे का रास्ता कैसे तय करती है, यह फ़िल्म उसे दर्शाती है। इसका सब्जेक्ट कलात्मक है लेकिन कमर्शियली भी यह सफल साबित होगी क्योंकि इसमें एक सफल फिल्म के सारे पक्षों पर गंभीरता से काम किया गया है। इसमें हमने हिंसात्मक दृश्यों को एक सीमित दायरे में दिखाते हुए फिल्म की विषयवस्तु को बेहतर ढंग से दर्शाया है। आज के दौरा में कमर्शियल फिल्मों के नाम पर ऐसी फिल्मों की भरमार है जिसमें विषय गौण है अश्लीलता का पुट ज्यादा होता है और फिल्म के संवाद स्तरहीन होते हैं। “द लाॅस्ट गर्ल” एक ऐसी फिल्म है जो आप सपरिवार देख सकते हैं और दूसरों को भी यह फिल्म देखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। इस फिल्म की कथावस्तु के साथ-साथ संगीत भी बहुत भावनात्मक है। शब्दों और संगीत के माध्यम से मुख्य किरदार के दर्द को हमने दिखाने की कोशिश की है।
“द लॉस्ट गर्ल” दर्शकों के लिए एक जिज्ञासा भी है और समाज के लिए एक मैसेज भी।
आप हरियाणा के अपने गांव हाँसी से अपने सपनों को साकार करने मुंबई आए। सफलता की राह आपके लिए आसान नहीं थी। फिर भी आपने अपनी मंजिल हासिल की। अपने ऑफिस में जब आप अपनी टीम को काम करते हुए देखते हैं तो कैसा महसूस करते हैं?
सफलता की राह मेरे लिए आसान नही रही।आज जबअपने ऑफिस में अपने साथ अपनी टीम को काम करते हुए देखता हूं तो बड़ी संतुष्टि होती है कि अपनी कम्पनी एडमेक इंडिया प्रायवेट लिमिटेड की स्थापना करने में मैं कामयाब हो पाया और कंपनी में स्वयं के रोजगार के साथ अन्य लोगों को भी रोजगार दे पाया। नौकरी हासिल करने के लिए जब मैं कई दफ्तरों के चक्कर लगाता था और निराशा ही हाथ लगती थी। मैंने निश्चय किया कि इस तरह मुझे अपना समय खराब नही करना है और अपनी कम्पनी बनानी है और खुद काम करना है और लोगों को भी काम देना है। मैं अपने इस दृढ़ निश्चय में सफल हो पाया यह मेरे लिए बड़े गर्व की बात है।
अपनी अब तक की सफलता का श्रेय आप किसे देना चाहेंगे?
अपनी सफलता का श्रेय मैं अपने माता-पिता को देना चाहूंगा जिन्होंने मेरी काबिलियत पर भरोसा किया और मुझे जीवन में कुछ कर दिखाने का खुला समय दिया। मुझे किसी समय सीमा में नहीं बांधा कि निश्चित समय में ही मुझे स्वयं को साबित करना है। मुझे अपना काम करने के लिए खुला आसमान दिया पूरी स्वतंत्रता दी। माता-पिता और अपने राज्य हरियाणा का नाम मैं रौशन कर पाया यही मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है।