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कर्णप्रिय संगीत फिल्मों की सफलता का एक बड़ा आधार है

admin by admin
July 9, 2024
in Cine Insight
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कर्णप्रिय संगीत फिल्मों की सफलता का एक बड़ा आधार है

 

दर्शकों से मिले असीम प्यार से अभिभूत हूं : श्रद्धा मंडल

श्रद्धा मंडल

पार्श्व गायिका एवं लाईव परफॉर्मर, बिलासपुर

 

पार्श्व गायिका श्रद्धा मंडल से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत

 

संगीत के प्रति आपकी प्रारंभिक रुचि के बारे में जानना चाहेंगे। इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा कैसे मिली?

 

बचपन से ही मुझे गीत-संगीत में रुचि थी। जब मैं चौदह वर्ष की थी तो फिल्मी नग़मे सुनकर गुनगुनाती थी। घर में सांगितिक माहौल थाए, मेरे माता-पिता संगीत के बहुत शौकीन रहे हैं। वे घर में आशा जी, लता जी, रफी साहब, किशोर कुमार जी, गीता दत्त जी,जैसे सुप्रसिद्ध गायक-गायिकाओं के गीत अक्सर सुनते थे। उनके साथ-साथ मैं भी इन गीतों को सुनती थी। अलग-अलग गायक-गायिकाओं की सुमधुर आवाज़ मुझे बहुत आकर्षित करती थी। उसी दौरान मैं संगीत से जुड़ गई और मुझे लगने लगा कि संगीत ही मेरा जीवन है। तब ‘अंखियों के झरोखे से’ मेरा पसंदीदा गाना होता था।

क्या आपने संगीत की विधिवत शिक्षा ली है? संगीत के क्षेत्र में आपको किन गुरूओं का सानिध्य मिला है?

 

स्कूल के दिनों से मैंने संगीत की विधिवत शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। मेरे सर्वप्रथम गुरु श्री तपन मजूमदार थे जो हमारे स्कूल में म्यूिज़क टीचर थे। मेरी मम्मी संगीत से जुड़ी हुई हैं उन्होंने खैरागढ़ विश्वविद्यालय से संगीत में विशारद की उपाधि हासिल की है। उनसे भी मैं घर में संगीत की तालीम लेती थी। अपनी संगीत की शिक्षा को ज़ारी रखते हुए मैंने छत्तीसगढ़ी एलबम और फिल्मों के लिए गाना भी शुरू किया। इंदिरा कला संगीत महाविद्यालय से मैंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया है। यहां मैंने डॉ. विप्लव चक्रवर्ती, डॉ. ममता चक्रवती के सानिध्य में शिक्षा प्राप्त की। डॉ. गौरव पाठक जी से संगीत की शिक्षा अभी ज़ारी रखी है।

 

आप इन दिनों डिजिटल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मस में बहुत एक्टिव हैं। आपका सबसे पॉपुलर छत्तीसगढ़ी गाना कौन सा है जिससे आपकी पहचान गायिका के रूप में बनी?

 

आज के दौर में डिजिटल मीडिया के हर प्लेटफार्म में सक्रिय रहना बहुत जरूरी है। श्रद्धा मंडल के नाम से मैं सभी डिजिटल प्लेटफार्म्स में हूं। ‘मोला प्यार होगे’ मेरा एक लोकप्रिय गाना है जो काफी पसंद किया गया। इस गाने से मेरी एक अलग पहचान भी बनी। शुभम साहू जी इसके गीतकार और संगीतकार हैं। रौशन वैष्णव जी ने मिक्सिंग की हैं। ‘मोला प्यार होगे’ गीत के बोल के हिसाब से श्रोताओं का बेहद प्यार मिला। इसके साथ-साथ मेरे गाए कुछ गीत ‘प्रेम नगरिया’, ‘सराबोर’, गिरथे पानी’, ‘साथ निभाबे संगी’ बहुत लोकप्रिय रहे हैं। सतीश जैन जी निर्देशित फिल्म ‘मोर छईया भुंईया-2’ में मैंने एक गीत गाया है ‘मन डोलत हावे न’ भी बहुत लोकप्रिय हो चुका है। यह फिल्म सुपरहिट हो चुकी है। मैं दर्शकों के मिले असीम प्यार से अभीभूत हूं।

गायन के सफर में आपके लिए सबसे कठिन गाना कौन सा रहा?

 

मेरे अब तक के सांगीतिक कैरियर में मेरे लिए सबसे कठिन गाना कौन सा रहा यह कहना बहुत मुश्किल है। मैं रोज संगीत की साधना करती हूं। अभी तक तो ऐसा महसूस नहीं हुआ कि कोई गाना मेरे लिए बहुत कठिन रहा हो। नए-नए संगीतकारों के साथ रिकार्डिंग के दौरान हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है क्योंकि हर संगीतकार का अपना एक स्टाइल होता है। मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि हर संगीतकार की उम्मीदों पर खरी उतरूंं।

 

छत्तीसगढ़ी के अलावा आप और कितनी भाषाओं में गा चुकी हैं?

 

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए मैंने बहुत सारे डेब्यू गाने गाए हैं। इसके साथ-साथ एक उड़िया फिल्म में भी मैंने डेब्यू किया है। अन्य भाषाओं का संगीत सुनना मुझे बेहद पसंद है। हिन्दी, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगू, मलयालम, बांग्ला भाषाओं में गाने गाती हूंं। संगीत तो एक विशाल सागर है जो भाषाओं के बंधनों से मुक्त है इस सागर में सभी भाषाएं समाहित हो जाती है।

छत्तीसगढ़ी फिल्मों में यहां की लोक संस्कृति को किस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। फिल्मों की सफलता में गीत संगीत कितना महत्वपूर्ण होता है?

 

किसी भी क्षेत्र की लोक संस्कृति, संगीत को सुदृढ़ करने में संगीत की अहम् भूमिका होती है। छत्तीसगढ़ की लोक कला-लोक संस्कृति काफी समृद्ध है। छत्तीसगढ़ में काफी प्रचलित लोक-गीत हैं जैसे सुआ,गौरा-गौरी गीत, पंडवानी, ददरिया, सोहर, भोजली। यह सब पारंपरिक लोक गीत हैं जो छत्तीसगढ़ की लोक कला-संस्कृति की पहचान है। यह सही है कि किसी भी फिल्म की सफलता में संगीत बेहद महत्वपूर्ण होता है क्योंकि फिल्म प्रदर्शित होने से पूर्व संगीत लोकप्रिय हो जाता है। हमारी लोक संस्कृति को छत्तीसगढ़ी फिल्मों के विभिन्न निर्देशकों द्वारा बहुत अच्छे से प्रदर्शित किया जा रहा है जिससे हमारी संस्कृति और संगीत देश-विदेश में भी लोकप्रिय हो रहा है। कर्णप्रिय संगीत फिल्मों की सफलता का एक बड़ा आधार है।

 

एक पार्श्व गायिका के रूप में आपकी क्या उपलब्धियां रही हैं। अपना गाया हुआ कौन सा गाना आपके दिल के बहुत करीब है?

 

मैंने बहुत सारे विभिन्न मूड्स के गीत गाए हैं। यह बता पाना मेरे लिए बहुत कठिन है कि कौन-सा गाना मेरे दिल के बहुत करीब है। सभी गाने मैं पूरे मन से गाती हूं और सभी गाने मुझे प्रिय हैं। वर्तमान की बात करें तो ‘मोर छईहां भुंईयां-2’ का गाना ‘मन डोलत हावे न’ मुझे बहुत अच्छा लगता है। इस गीत को सतीश जैन जी ने लिखा है और सुनील सोनी जी का संगीत निर्देशन है। मुझे इस बात की भी संतुष्टि है कि मेरे बहुत सारे गाने दर्शकों के दिल के बहुत करीब होते हैं और उनका प्यार मिलता रहता है।

 

आप एक लाईव परफॉर्मर भी हैं। आपका अब तक का सबसे बड़ा “शो” कौन सा रहा और श्रोताओं की कैसी प्रतिक्रिया रही?

 

मैं गीत-ग़ज़ल,भजन के लाईव परफारमेंस देती हूं। दर्शकों के सामने लाईव परफारमेंस का एक अलग ही एहसास होता है। मेरा अब तक का सबसे बड़ा “शो जश्ने ज़बा” रहा है। यह आयोजन आशीष राज सिंघानिया जी द्वारा विभिन्न स्थानों में किया जाता है। वे कला के प्रति समर्पित शख्सियत हैं। इस आयोजन में वे राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर की हस्तियों को बुलाते हैं। मुझे खुशी है कि मैं इस प्रतिष्ठित आयोजन का हिस्स रही हूं। लाईव प्रोग्राम मैं नियमित रूप से करती रहती हूं। श्रोताओं से मिली सराहना मेरा उत्साह बढ़ाती है।

 

नए गायक-गायिकाओं के लिए छत्तीसगढ़ में कैसी संभावनएं हैं। इस क्षेत्र में सफल होने के लिए आप उन्हें क्या मैसेज देना चाहती हैं?

 

नए गायक-गायिकाओं के लिए छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में काफी संभावनाएं हैं। संगीत की गहरी समझ और विधिवत तालीम स्वर साधना के लिए ज़रूरी है। गायन में सफल होना है तो संगीत के प्रति पूरा समर्पण होना जरूरी है। नए गायकों को हमारी इंडस्ट्री के निर्माता-निर्देशक मौका देते रहते हैं। सिंगर बनने की इच्छाशक्ति होना बहुत जरूरी है। अपना टैलेंट डिजिटल मीडिया में प्रस्तुत करते रहें। डिजिटल मीडिया के द्वारा लोगों तक पहुंचना सबसे पहले जरूरी होता है। जो लोग पारखी होते हैं वो नए टैलेंट को खोज निकालते हैं और कुछ कर दिखाने के अवसर देते हैं।

 

एक पार्श्व गायिका के रूप में आप आप अपने आपको कितना सफल मानती हैं? क्या लक्ष्य हैं आपके?

 

सफलता का कोई निश्चित मापदंड नहीं होता। सफलता किसी एक जगह पर स्थिर नहीं रहती है। पार्श्व गायिका के रूप में ही अपनी पहचान बनाए रखना चाहती हूं। शास्त्रीय गायन में भी मैं निरंतर अभ्यास कर रही हूं। शास्त्रीय गायन में निपुण होना चाहती हूं। मेरा लक्ष्य यही है कि मैं अच्छे-अच्छे गीतगाती रहूं और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करती रहूं।

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