सिने इनसाइट
भारती वर्मा
फिल्ममेकर
संस्थापक – गोल्डन ड्रीम्स प्रोडकशन्स
रायपुर
अनुभवों ने बहुत कुछ सीखा दिया
छत्तीसगढ़ी फिल्में मल्टीप्लेक्स में दर्शकों को आकर्षित कर रही हैं यह एक अच्छा संकेत है
छत्तीसगढ़ी फिल्म मेकर भारती वर्मा से गुरबीर सिंघ चावला से विशेष बातचीत
आप गोल्डन ड्रीम्स प्रोडक्शन की संस्थापक हैं। इसे शुरू करने के पीछे आपका क्या विजऩ है?
गोल्डन ड्रीम्स प्रोडक्शन के बैनर तले दर्शकों के लिए अच्छी फिल्में बनाना हमारा विजऩ है। छत्तीसगढ के दर्शकों की रुचि अनुसार ऐसी फिल्मों का निर्माण करें जिसमें समाज के लिए कोई संदेश हों फिल्में पारिवारिक और मनोरंजक हों।
छत्तीसगढ़ में फिल्म मेंकिंग के लिए आपके सामने कैसी चुनौतियों हैं। आपके प्रोडक्शन की क्या उपलब्धियां रही हैं?
फिल्म मेकिंग एक चुनौतीपूर्ण काम है। हमारे लिए यह चुनौती है कि कम संसाधनों में टीम वर्क के साथ तालमेल कर ऐसी फिल्में बनाएं जो क्वालिटी के हिसाब से राष्ट्रीय स्तर की हो। हमारी पहली फिल्म ‘डार्लिंग प्यार झुकता नहीं’ बनी जिसे दर्शकों का भरपूर स्नेह मिला। हमारी यह सफलता हमारे लिए प्रेरणा है कि भविष्य में और अच्छी फिल्में दर्शकों को दे सकें।
फिल्म मेकिंग का आपने कहीं से प्रशिक्षण लिया या अपने अनुभवों से सीखा है?
अपनी पहली-पहली ‘डार्लिंग प्यार झुकता नहीं’ से काफी मुझे इस क्षेत्र के काफी अनुभव हुए जो मेरे लिए एक प्रशिक्षण की तरह ही हैं। कहीं से प्रशिक्षण लेकर काम करना और अपने काम से सीखने मे काफी अन्तर है। अपने पहले प्रोजेक्ट को ही अपना प्रशिक्षण मानती हूं जो मेरी फिल्म मेकिंग का आधार है।
अपनी नवीनतम फिल्म ‘जीरो बनही हीरो’ के बारे मेंं कुछ बताइए। इसमें कलाकारों ने कैसा अभिनय किया है। प्रमुख किरदार किन्होंने निभाए हैं?
इस फिल्म में सारे कलाकारों ने बहुत ही अच्छा अभिनय किया है। जहां तक मुख्य कलाकारों की बात है मैं फिल्म में काम करने वाले सारे कलाकारों को समान महत्व देते हुए उन्हें मुख्य किरदार ही मानती हूं। कलाकारों का किरदार छोटा हो या बड़ा सभी महत्वपूर्ण होते हैं और उनके बिना फिल्म अधूरी रहती है। मन कुरैशी जो छत्तीसगढ़ी फिल्मों के स्टार हैं उन्होंने इसमें नायक की भूमिका निभाई है। उन्होंने हमारी पहली फिल्म में भी काम किया है। नायिका की भूमिका में उडिय़ा फिल्मों की स्टार भूमिका दाश ने निभाई है। उडिय़ा में उन्होंने बहुत सारी सफल फिल्में दी है। उन्होंने एक हिन्दी फिल्म ‘चन्द्रमा’ में भी काम किया है। अन्य कलाकारों में पूनम किरी, विक्रमराज,अजय पटेल, अंजली चौहान ने बखूबी काम किया है। नमामी दत्त और सुनील सोनी ने गीत गाए हैं। डीओपी सिद्धार्थ सिंह, सहायक निर्देशक पंकज यादव, लता तिवारी और क्रिएटिव डायरेक्टर आदिश कश्यप हैं। यह एक पारिवारिक और मनोरंजक फि़ल्म है जिसमें समाज के लिए सन्देश भी है। मुझे दर्शकों से यह पूरी उम्मीद है कि हमारी पहली सफल फि़ल्म ‘डार्लिंग प्यार झुकता नहीं’ के बाद ‘ज़ीरो बनही हीरो’ को भी बहुत पसंद करेंगे। यह फि़ल्म 23 जून को प्रदर्शित होगी।
फिल्म की सफलता के लिए संगीत बहुत मायने रखता है। अपनी फिल्म के संगीत से आप कितनी संतुष्ट हैं। इसके गाने कहां फिल्माए गए हैंं?
यह बात सही है कि फिल्म की सफलता में संगीत बहुत मायने रखता है। फिल्म के गीत-संगीत में हमने बहुत मेहनत की है। गानों की शूटिंग छत्तीसगढ़ मे देवबलौदा, मैनपाट और नया रायपुर के मनोरम स्थलों में हुई है। संगीत हमारी फिल्म का बहुत बड़ा आकर्षण है।
छत्तीसगढ़ी सिनेमा अभी विकास के किस दौर से गुजर रहा है। भविष्य की कैसी संभावनाएं आप देखती हैं?
छत्तीसगढ़ी सिनेमा निरंतर विकास कर रहा है। कहानी, पटकथा, गीत-संगीत, कलाकारों का अभिनय परिपक्वता नजऱ आती है। फिल्म निर्माण की तकनीकों में काफी सुधार आया है। नई प्रतिभाएं भी अच्छा काम कर रही हैं।
ऐसा कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ी सिनेमा इंडस्ट्री में प्रोफेशनलिज्म की बहुत कमी है। अपने काम के प्रति अनुशासन, समय की प्रतिबद्धता की कमी दिखाई देती है। आपका क्या अनुभव रहा है?
ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ी सिने इंडस्ट्री में प्रोफेशनलिज्म की कमी है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा निरंतर परिपक्व हो रहा है। मेरा ऐसा मानना है कि अगर फिल्म का कैप्टन स्वयं अनुशासित और समय के प्रति प्रतिबद्ध होगा तो पूरी टीम अनुशासन, समय के प्रबंधन के साथ काम करेगी। जहां तक मेरे अपने प्रोजेक्ट की बात है सभी ने समय के प्रबंधन के साथ पूरे अनुशासन से काम किया है। पूरी टीम से मिले असीम प्यार और सहयोग के लिए मैं सबका शुक्रिया अदा करना चाहूंगी कि समय सीमा में हम अपनी फिल्म की शू्टिंग पूरी कर सके।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माण के लिए राज्य के बाहर के कलाकारों पर कितनी निर्भरता है। यहां के कलाकारों में क्या संभावनाएं आप देखती हैं?
छत्तीसगढ़ के कलाकार अपनी माटी से जुड़े हुए हैं, बहुत प्रतिभाशाली हैं। बिना किसी प्रशिक्षण के यहां के कलाकार अपनी कला दिखाने में माहिर हैं। उनके काम में फिल्मों में विभिन्न किरदार निभाते हुए परिपक्वता आ रही है। फिल्मों के व्यवसायिक पक्ष को देखते हुए राज्य के बाहर के मशहूर कलाकारों को भी अवसर देना पड़ता है। मैं तो मानती हूं कलाकार अपनी कला से पहचाने जाते हैं, उन्हें राज्य की सीमाओं से बांधकर नहीं देखना चाहिए। हमें यह प्रयास जरूर करने चाहिए कि राज्य के कलाकारों को प्राथमिकता देते हुए अन्य कलाकारों को भी बराबर अवसर दें।
छत्तीसगढ़ी सिनेमा के विकास के लिए छत्तीसगढ़ शासन से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं?
छत्तीसगढ़ी सिनेमा में विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसे पूर्ण उद्योग का दर्जा मिलना चाहिए ताकि सिनेमा के निर्माण के लिए वित्तीय ज़रूरतें के लिए ऋण की उपलब्धता हो सके।
शासन से यही अपेक्षाएं हैं कि फिल्मों को मिलने वाली सब्सिडी को पूरी पारदर्शिता से लागू किया जाए। छत्तीसगढ़ के बाहर के प्रोडक्शन हाउस की हिन्दी छत्तीसगढ़ी फिल्में यहां बन रही हैं, वेब सीरिज भी बन रही हैं। फिल्में बनाने में निर्माण की लागत भी यहां तुलनात्मक रूप से कम आती है। शूटिंग के बहुत सारे अच्छे लोकेशन्स भी हैं। सर्वसुविधायुक्त फिल्मसिटी का निर्माण भी होना चाहिए ताकि निर्माता व्यवस्थित ढंग से अपनी फिल्मों का निर्माण और पोस्ट प्रोडक्शन कर सकें। यहां की फिल्मों को टैक्स में फ्री करने की पहल होनी चाहिए। शासन से एक अपेक्षा यह भी है कि वरिष्ठ कलाकारों को पेंशन की सुविधा दी जाए जिनका छत्तीसगढ़ी सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान रहा है।
ओटीटी और मल्टीप्लेक्स में छत्तीसगढ़ी फिल्मों के प्रदर्शन की शुरूआत हो चुकी है। इसके क्या फायदे आप देखती हैं?
ओटीटी पर छत्तीसगढ़ी फिल्मों के प्रदर्शन से व्यवसायिक दृष्टिकोण से लाभ होगा। छत्तीसगढ़ी सिनेमा की पहुंच का दायरा रीजनल से नेशनल लेवल तक पहुंचेगा। केवल सिंगर थियेटरों में प्रदर्शन से फिल्मों को लाभ मिलना बहुत मुश्किल है। ओटीटी पर फिल्में देखने वालों का विशाल दर्शक होता है। मल्टीप्लेक्स में भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों का अब प्रदर्शन हो रहा है। यह एक अच्छा संकेत है। छत्तीसगढ़ी फिल्में मल्टीप्लेक्स में दर्शकों को आकर्षित करने में कामयाब हो रही है।