सिने इनसाईट
सुनील सोनी
संगीतकार एवं पार्श्व गायक
हर फिल्म के लिए कुछ नया देने का मैं दिल से प्रयास करता हूं
छत्तीसगढ़ी सिनेमा के स्टार संगीतकार सुनील सोनी से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत
संगीत और गायन के प्रति आपकी अपनी रुचि थी या यह आपकी विरासत में मिली?
मैंने बचपन से ही घर में संगीत का माहौल देखा। संगीत की तरंगों के साथ ही मैं पला-बढ़ा हूं। मेरे पापा वेणु कुमार सोनी कला के क्षेत्र में काफी सक्रिय थे। मेरे पापा अभिनय कला में पारंगत थे और उनका एक स्थापित नाम था। लोकमंचों और दूरदर्शन के कायक्रमों में वे अभिनय करते थे। संगीत के प्रति मेरी इतनी गहरी रुचि थी कि बचपन के दिनों में बाल मंदिर में जब पढ़ाई के दौरान हमेशा कुछ न कुछ गुनगुनाता रहता था और मेरी दीवानगी का यह आलम था कि पॉन्ड्स पावडर के खाली डिब्बे को माईक बनाकर अपनी धुन में गया करता था। पापा ने जब देखा कि गाने की कला मेरे अंदर है तो उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और विधिवत संगीत की शिक्षा दिलवाने की शुरूआत की। अपने पहले गुरु श्री जागेश्वर प्रसाद देवांगन जी से मैने गायन सीखना शुरू किया। विधिवत शास्त्रीय गायन मैंने इन्हीं से सीखा।
संगीत के क्षेत्र में आपकी क्या शैक्षणिक योग्यताएं हैं?
संगीत के क्षेत्र में मैंने संगीत विशारद की उपाधि हासिल की है। लोक-संगीत में मैंने डिप्लोमा किया है। संगीत सीखने का दौर मेरे लिए हमेशा यादगार रहेगा। बहुत सारे सपने लेकर मैं अपने गुरुजी के पास पहुंचता था। संगीत के प्रति मेरे ज़ेहन में बहुत सारे सवाल होते थे। गुरुजी से मुझे बहुत प्यार मिला और फटकार भी मिली। फटकार इसलिए मिलती थी क्योंकि मैं कभी-कभी सुबह चार बजे संगीत सीखने के लिए गुरुजी के घर पहुंच जाता था और वे मुझे डांटते थे कि यह कोई समय है आने का। मैं अपने गुरुओं के साथ सारा दिन रहता था। अपने गुरुओ की दी हुई तालिम ही मेरी सफलता का आधार है। संगीत और गायन मेरे दिल की आवाज है।
आपकी पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म कौन-सी थी जिससे आपको पार्श्वगायन के रूप में पहचान मिली?
मेरी पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म थी ”झन भूलो मां बाप ला ” थी जिससे मुझे एक पार्श्वगायक के रूप में पहचान मिली। यह फिल्म वर्ष 2003 में प्रदर्शित हुई थी। सतीश जैन जी ने इस फिल्म को निर्देशित किया था जो आज छत्तीसगढ़ के स्टार मेकर डायरेक्टर हैं।
मैं यह बताना चाहूंगा कि पार्श्वगायन से पहले मेरे एलबम्स बहुत हिट हुए थे। पांच हजार से ज्यादा गाने मैंने एलबम्स के लिए गाए हैं। यह सारे गाने, वीडियो में होते थे। मेरे काफी वीडियोज को प्रेम चंद्राकर जी ने डायरेक्ट किया था। मेरी आवाज़ होती थी और विभिन्न कलाकारों का अभिनय होता था। ममता चन्द्राकर जी के साथ भी मेरे बहुत सारे गाने सुपरहिट हुए हैं।
पहली फिल्म में पार्श्वगायन के लिए कैसी चुनौतियां आपके सामने थी?
किसी भी पार्श्वगायक के लिए यही चुनौती रहती है कि गीत के शब्दों के भाव आपकी गायकी में नजऱ आने चाहिए। मेरे लिए भी यही चुनौती रही। अपनी पहली फिल्म ‘झन भूलो मां बाप ला’ के लिए। इस फिल्म के संगीतकार श्री अर्नब चटर्जी थे। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं इस चुनौती में खरा उतरा और इस फिल्म के गीतों को बहुत सराहना मिली। इस फिल्म में मैंने चार गीत गाए थे।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों में यहां की लोक संस्कृति को बड़ी पहचान देने के क्या प्रयास हो रहे हैं?
गीत-संगीत फिल्मों की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। बिना गीत-संगीत के कोई भी फिल्म अधूरी रहती है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों में यहां के लोक-गीत, संस्कृति और उनकी कलात्मक प्रस्तुति की अहम् भूमिका रही है। इस पर काफी काम हो रहा है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के माध्यम से यहां के गीत-संगीत, लोककला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के प्रयास हो रहे हैं। मनोज वर्मा के निर्देशन में बनी छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भूलन दे मेज’ जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इस फिल्म में यहां की लोक-संस्कृति की प्रस्तुति गीतों के माध्यम से बहुत ही प्रभावशाली ढंग से की गई है। इस फिल्म के गीत बहुत पापुलर हुए। खासकर एक गीत ‘नंदा जाही का रे’ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुआ है।
आप एक गायक होने के साथ-साथ संगीतकार भी हैं। एक गायक का संगीतकार भी होना उसने कैरियर की सफलता के लिए क्या मायने रखता है?
एक गायक का संगीतकार होना उसके कैरियर को एक नई पहचान देता है। एक गायक जब अपने स्वरबद्ध किए हुए गीत गीता है तो वह गीत पूरी तरह से जीवन्त हो उठता है। मेरे दिये न हुए संगीत में छत्तीसगढ़ और बाहर के कई गायकों ने अपने स्वर दिए हैं। मैंने अपने स्वयं के संगीत में गीत गाएं हैं। मेरी पूरी कोशिश रहती है कि फिल्म की कहानी के अनुसार गीतों का संगीत संयोजन करूं। हर फिल्म की कहानी और फिल्म के निर्देशक की संगीतकार से काफी अपेक्षाएं होती है। मेरा हमेशा यह प्रयास रहा है कि गायक और संगीतकार के रूप में फिल्मों के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूं। अपने काम के प्रति मेरा ज़ूनून ही मुझे निरन्तर अपना काम बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है।
आपने बहुत सारे हिट गीत गाए हैं। गायन के अपने इस सफर में आपका अपना पसंदीदा गीत कौन-सा है?
मुझे तो अपने गाए हुए सारे गीत पसंद हैं। फिर भी इन दिनों मेरा गाया हुआ एक गीत फिल्म ‘ले शुरू होगे मया के कहानी’ का टाईटल गीत ‘मोरो सुरू हो जातिस मया के कहानी’ मुझे बहुत ज्यादा पसंद है। यह गीत आज लाखों लोगों की पसंद बन चुका है और मेरा भी।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के एक स्थापित निर्देशक सतीश जैन के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
सतीश जैन छत्तीसगढ़ी फिल्मों के आधार स्तंभ हैं। वे छत्तीसगढ़ के सुभाष घई हैं और स्टार मेकर हैं। इनके साथ काम करना अपने आपमें एक बड़ी उपलब्धि है। फिल्म की कहानी, पटकथा को गीत-संगीत, संपादन और हर पहलू पर उनकी मजबूत पकड़ है। उनकी हर फिल्म से पूरी टीम को हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है। मेरा सौभाग्य है कि मैं उनके साथ निरंतर काम कर रहा हूं।
‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ का संगीत बेहद लोकप्रिय हो चुका है। आप एक स्टार संगीतकार बन चुके हैं। इस फिल्म के संगीत की लोकप्रियता का श्रेय किसे देना चाहेंगे?
सबसे पहले दर्शकों और श्रोताओं का दिल से आभारी हूं। जिनके प्यार और आशीर्वाद के कारण इसके सारे गीत हिट हो गए हैं। इस फिल्म के संगीत और गायन के लिए मैंने अपना श्रेष्ठ देने की कोशिश की है। इ्सका सबसे बड़ा श्रेय मैं फिल्म के निर्देशक सतीश जैन जी को देना चाहूंगा। जिन्होंने फिल्म की कहानी की मांग के अनुसार मुझे मार्गदर्शन दिया और इसका संगीत तैयार करवाया। सतीश जैन इस फिल्म के संगीत से संतुष्ट हुए यह मेरे लिए बड़ी बात है।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों में नए उभरते हुए गायकों के लिए कैसे अवसर है। एक संगीतकार के रूप में आप क्या कहना चाहेंगी?
एक संगीतकार के रूप में मैं यही कहना चाहूंगा कि नए प्रतिभाशाली गायकों में बहुत हुनर है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों का दायरा बढ़ रहा है। नए गायकों के अवसर भी बहुत हैं लेकिन नए गायकों को अपनी गायकी में मौलिकता का पुट देना होगा। किसी की कापी न करें। इन दिनों में संगीत के क्षेत्र में ‘टोन’ पर कार्य कर रहा हूं। मुझे अलग-अलग ‘टोन’ के सिंगर्स चाहिए जो अपने अंदाज में कुछ नया दे सके। जैसे बॉलीवुड इंडस्ट्री में कैलाश खेर, अरिजीत सिंह, सुखंविदर जी, श्रेया घोषाल आदि की अपनी एक अलग टोन और मौलिकता है। गायन को अपना प्रोफेशन बनाना है तो विधिवत से संगीत की शिक्षा भी जरूरी है ताकि गाने वाला संगीत की गहराईयों को समझ सके। छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए मुझे अलग और मौलिक आवाज़ के सिंगर्स चाहिए। ऐसे प्रतिभाशाली गायकों का हमेशा स्वागत है।
अन्य प्रादेशिक भाषाओं की फिल्मोंकी तुलना में हमारे छत्तीसगढ़ की फिल्मों में संगीत को आप कितना समृद्ध मानते हैं।
छत्तीसगढ़ी फिल्मों का संगीत बहुत समृद्ध है। छत्तीसगढ़ के खान-पान से लेकर यहां की शैली, संस्कृति, लोककला, संगीत, धुन, आवाज़, यहां के खास वाद्ययंत्र सभी बेमिसाल है। यहां की संस्कृति और गीत-संगीत की गहराईयों पर काम करने की अभी असीमित संभावनाएं हैं। इसे हम वैश्विक स्तर पर ले जा सकते हैं।
छत्तीसगढ़ी सिनेमा के आप एक बड़े संगीतकार हैं। हिन्दी फिल्मों के लिए भी अपनी आवाज़ और संगीत देना चाहेंगे।
हिन्दी सिनेमा में संगीत देना मेरे संगीत के सफर का एक दूसरा पड़ाव होगा। मुझे इंतजार है इस अवसर का कि मैं हिन्दी फिल्मों में भी अपने गायन और संगीत की काबिलियत को दिखा सकूं।
संगीतकार और गायक के रूप में आप अपनी प्रतिस्पर्धा किससे मानते हैं?
मैं प्रतिस्पर्धा की बजाय अच्छा काम करने में विश्वास करता हूं। मेरी प्रतिस्पर्धा स्वयं से होती है। हर फिल्म के लिए कुछ नया देने का मैं दिल से प्रयास करता हूं। संगीत तो एक अथाह सागर है। संगीत ही मेरा जीवन है, संगीत ही मेरी पहचान है।