Health Care
Dr. Sarvjeet Kaur Chanana
BHMS/MA clinical psychology
Owner of – Dr.Kaur’s Homoeopathy Clinic, Raipur (C.G.)
Ex-physician (Owner) of Prabhsimar Homoeocure Clinic
(New Delhi)
Ex-lecturer in MP Homoeopathy College Raipur (C.G.)
Achievement As 1st rank University topper
in Chhattisgarh (Gold Medal Nominee)
होम्योपैथी और शिशु मनोविज्ञान
आपका बच्चा किसी प्रकार के मानोघात से जूझ रहा है तो होम्योपैथी के परामर्श से बेझिझक उसका इलाज कराएं और उसकी मदद करने से पीछे ना हटें
जैसे संतान युक्त होना एक वरदान है वैसे ही शारीरिक रूप से विकसित और मानसिक रूप से संतुलित/सक्रिय संतान का होना माता-पिता के उत्कृष्ट प्रयास का एक मनोहर परिणाम है।
आज के दौर में सभी एक सफल और प्रशंसनीय अभिभावक बनना चाहते हैं और पूर्णत: उनकी यही कोशिश और अपेक्षा होती है कि उनकी संतान का स्वभाव, आचरण, सामाजिक दृष्टिकोण, अभिवृति, व्यवहारिक प्रतिक्रिया और पारिस्थितिक मनोदशा सिर्फ संतुलित ही नहीं अपितु उसकी उम्र से ज्यादा विकसित और उत्कर्ष रहे ।
पर क्या ऐसा हमेशा संभव होना मुमकिन है या कुछ कुपरिस्थितियों की वजह से हमें कभी दवाइयों का भी सहयोग लेना पड़ सकता है ?
आइए समझते हैं उन छोटी-छोटी भूल-चूक को जहां हम अपने बच्चों की मनोवृति को प्रबुद्ध बनाने में निष्फल हो जाते है । और जानने की कोशिश करते हैं की इस निष्फलता के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाले बच्चों के मानसिक विकारों का निवारण करने में होम्योपैथिक दवाइयां कितनी सक्षम और सफल है ।
बच्चों में पाय जाने वाले मानसिक विकारों की जड़ से जुड़े कुछ रहस्य –
आपके परिवार में जन्म लेने वाले शिशु की मनोदशा कब निर्धारित होती है?
आपका यह मानना गलत है कि शिशु की मनोवृति मां के गर्भावस्था के दौरान ही निर्धारित होना शरु हो जाती है। असल में यह तो दूसरा चरण है। पहला चरण तो संभोग की वेला का सही चुनाव करना है। संतान किस मानसिक प्रवृत्ति का होगा ये बात तो संभोग के समय से ही निश्चित होना शुरू हो जाती है। आने वाले शिशु के लिए माता-पिता मानसिक रूप से कितने तैयार और सकारात्मक है , इस बात का होने वाले बच्चे के अंतर्मन , मनोदशा और मानसिक विकास पर पूर्ण रूप से प्रभाव पड़ता है। अगर आप किसी जीर्ण/लाइलाज बीमारी से ग्रसित हैं या तनाव, अवसाद, घृणा, भय या दबाव की परिस्थिति से गुजर रहे हैं तो संभोग काल को स्थगित करें क्योंकि ऐसी दशा में संभोग करने से आने वाले शिशु के मानसिक स्थिति पर बहुत गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है। अगर आप विबुद्ध संतान चाहते हैं तो खुशमिजाज और सकारात्मक मानसिक स्थिति में ही संभोग करें परिणाम अच्छा मिलेगा।
गर्भावस्था के दौरान मां की किन कमियों/गलतियों की वजह से होने वाले शिशु के मानसिक विकास पर होता है प्रहार –
गर्भावस्था में अगर मां किसी कुपोषण, हार्मोनल इंबैलेंस, जीर्ण रोग, अवसाद, मानसिक दबाव, भयानक डर, संताप, हिनता, रोष या आक्रोश की परिस्थिति से गुजर रही है तो बच्चे के मानसिक विकास में ह्रास होने के कारण उसमें ये विकार पाए जा सकते हैं जैसे – मंदबुद्धि, डरपोक, कमजोर याददाश्त, धीमी अनुक्रिया, हीनभावना, जिद्दी, हठी, आक्रामक, late milestones, धैर्यहीन, कुपोषित, इत्यादि।
इसके अतिरिक्त उसमें कुछ अन्य विकार भी पाए जा सकते हैं जैसे – तोतलाना, हकलाना, अंगूठा चूसना, नाखून चबाना, आंखें मिच मिचाना, तरह-तरह के अप्रकृत चेहरे बनाना, हर वक्त रोना बिलखना या सिसकना इत्यादि।
नोट – इस तरह के विकारों से निदान पाने के लिए होम्योपैथिक दवाइयां काफी सफल कारीगर साबित हुई हैं।
कितने सफल है आप अपनी संतान की मनोदशा को समझने में –
क्या आप अपने शिशु की अभिव्यक्ति को पूर्ण रूप से समझने में चूक रहे हैं ?
इस सवाल का जवाब आपके भीतर ही छिपा है। बच्चों का अवचेतन मन काफी संवेदनशील और जिज्ञासु होने के कारण वो जितना बोले गए शब्दों से नहीं सीखते उससे कई ज्यादा वह अपने वातावरण में मौजूद लोगों के आचरण से सीखते है। इसलिए अपने बच्चों की व्यवहारिक प्रतिक्रिया को समझने के लिए आपको पहले अपने आचरण पर केंद्रित (focus) करना पड़ेगा तभी आप उनके मनोवृति की तह तक पहुंच सकते हैं और उसे बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
उसकी बुद्धि विकसित करने के लिए आपको उसे आत्मसम्मान, मनोबल, स्वयं निर्णय लेने की क्षमता, आत्मनिर्भरता जैसे सकारात्मक प्रक्रियाओं से अवगत कराना होगा। आपकी इतनी सहायता भी आपके बच्चों को मानसिक रूप से पल्लवित करने में काफी मददगार साबित होगी।
हमारी कौन सी बातें/हरकतें बच्चों के कोमल हृदय में गहरा वार कर जाती है-
बड़ों के कुछ ऐसे हीन आचरण भी हैं जो एक मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चे के मन पर ऐसा गहरा प्रहार करतें हैं कि जिनकी चोट से बच्चे की मनोदशा दूषित हो जाती है और उसकी मानसिक प्रतिक्रियाएं बदलने लगती है ।
यह भयानक आचरण कुछ इस प्रकार हैं जैसे कि – बच्चे की उपेक्षा करना, स्नेह और समय ना देना, हर वक्त खुद को व्यस्त जताना, छोटी गलती में जरूरत से ज्यादा डांटना, दूसरों के सामने अपमानित करना या मारना, पारिवारिक कलह, उसके सामने शर्ते रखना, धमकाना या छोटी-छोटी बातों में ब्लैकमेल करना, उसके अच्छे कार्यों पर प्रशंसा ना करना, उसकी सफलता को नकारना, उसकी बातें ना सुनना, उसकी कल्पनाओं को सही दिशा ना देना, उसकी आवश्यक इच्छाओं को पूरी ना करना, किसी भी चीज़ के लिए उसे जरूरत से ज्यादा तरसाना या इंतजार कराना, किसी दूसरे बच्चे से उसकी अनावश्यक तुलना करना। और जब बच्चा इन प्रहारों का अतिक्रमण नहीं कर पाता तो कई तरह के मानसिक विकार अर्जित कर लेता है।
बच्चों के मानसिक विकारों के विरुद्ध होम्योपैथी की भूमिका –
होम्योपैथिक दवाइयों की खूबी और गुण यह है कि ये drug proving द्वारा प्रूव्ड रेमेडीज़ हैं जिनके कोई साइड इफेक्ट्स, ओवरडोज या दुष्प्रभाव नहीं होते । ये बच्चों के मनोविकारों को सुधार करने में कारगर हैं। यदि बच्चा किसी अनुवांशिक कारणों से मानोदोष का शिकार हुआ है तो ये दवाइयां उसके genetic / miasmatic पर जाकर अपना उपचार आरंभ करती है। और अगर उसकी शिकायत वातावरण की कुपरिस्थितियों से उत्पन्न या अर्जित हुई है तो ये दवाइयां उस मनोस्थिति के ट्रिगरिंग एजेंट पे काम करती है ।
कुछ ऐसी अद्वितीय होम्योपैथिक दवाइयां जो मानसिक विकारों में अपना अद्भुत परिणाम देते हैं जैसे –
हायोसाईमस, लेकेसिस, स्टै्मोनियम, कैनाबिस, टैरंटूला, इग्नेशिया, प्लैटिना, बैरायटा कार्ब, केमोमिला, सीना, एथूजा, अर्जेंटम नाइट्रिकम, बोरेक्स, एकोनाइट, कैलकेरिया कार्ब, एनाकार्डियम, सोराइनम, बैलाडोना, एलुमिना, पल्सेटिला, साइलेशिया, नेट्रम म्यूर इत्यादि।
आपका बच्चा किसी प्रकार के मानोघात से जूझ रहा है तो होम्योपैथी के परामर्श से बेझिझक उसका इलाज कराएं और उसकी मदद करने से पीछे ना हटें।