डॉ. कृष्णकांत साहू
विभागाध्यक्ष
हार्ट, चेस्ट एंड वैस्कुलर सर्जरी विभाग
एडवांस्ड कार्डियक इंस्टीट्यूट
पंडित जेएनएम मेडिकल कालेज
रायपुर, छत्तीसगढ़
पहले ऐसा कहा जाता है कि हृदय की बीमारियां केवल बुजुर्गों को होती है लेकिन
आज के दौर में हृदय रोगों की कोई उम्र सीमा नहीं रह गई है
मेकाहारा रायपुर के एडवांस कार्डिएक इंस्टीट्यूट
के कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कलर सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत
डॉ. कृष्णकांत साहू स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक स्थापित नाम है। अनेक रोगियों को उन्होंने शल्य चिकित्सा से नया जीवन प्रदान किया है। वे रायपुर में पंडित जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल मेकाहारा में कार्डियक सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रमुख हैं। कार्डियो, थोरेसिक एंड वेस्कुलर सर्जरी में उनका योगदान महत्वपूर्ण है। मेकाहारा में एडवांस्ड कार्डियक इन्स्टीट्यूट के कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कलर सर्जरी विभाग के एचओडी के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। डॉ. साहू अपनी चिकित्सा सेवा के दौरान हार्ट, फेफड़े और वेस्कुलर की छह हजार से ज्यादा सर्जरी कर चुके हैं।
आईए मुलाकात करते हैं डॉ. कृष्णकांत साहू से।
आपके चिकित्सा सेवा के कैरियर के प्रारंभिक सफर के बारे में जानना चाहेंगे?
मैंने एमबीबीएस एवं एमएस (जनरल सर्जरी) की डिग्री मेडिकल कॉलेज रायपुर से हासिल की है। इसके बाद एमसीएच (CTVS) सुपर स्पेशियलिटी की डिग्री सवाई मानसिंह कॉलेज जयपुर से हासिल की है। नारायण हृदयाालय (परियारम मेडिकल कॉलेज कन्नुर) केरल में अपने कैरियर के आरंभ में छ: वर्षों तक अपनी सेवाएं दी है।
चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में आपकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के बारे में कृपया बताएं?
मैंने अपने कैरियर में छह हजार से अधिक सर्जरी की हैं। इनमें कोरोनरी बायपास, वाल्व रिप्लेसमेंट, ओपन हार्ट सर्जरी, बच्चों के जन्मजात हृदय रोग, फेफड़ों और हाथ पैर के खून की नसों की सर्जरी शामिल है।कुछ ऑपरेशन्स जो छत्तीसगढ़ में पहली बार हुए हैं उनमें से प्रमुख हैं सुचरलेस एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट, एओर्टिक आर्च डिब्राचिंग सर्जरी, थोरेसिक डक्टलाइगेसन इत्यादि लिस्ट लंबी है, खून की नसों का बेहद जटिल ऑपरेशन कर चुका हूं।
मेकाहारा के एडवांस कार्डिएक इंस्टीट्यूट में कौन-सी आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध है?
मेकाहारा हॉस्पिटल में आधुनिक सुविधाओं के तहत बीटिंग हार्ट बायपास सर्जरी, ओपन हार्ट सर्जरी, हृदय के वाल्व ऑपरेशन, छाती एवं फेफड़ों की सर्जरी, खून के नसों की सर्जरी, वेरीकोज वेन का उपचार, बच्चों के जन्मजात हृदय रोग की सर्जरी, फेफड़ों और हृदय के कैंसर की सर्जरी से लोबेक्टॉमी, न्यूमोनेक्टॉकी, ब्रेंको प्लरल फिस्टुला क्लोजर, एओटो फिमोरल बायपास, फिमोरो पापलिटियल बायपास एओर्टिक, एन्युरिज्म सर्जरी, डायलिसिस के लिए फिस्टुला सर्जरी, इत्यादि आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं।
जिन लोगों को शल्य चिकित्सा की जरूरत होती है उनकी सर्जरी की न्यूनतम उम्र क्या होनी चाहिए?
हृदय रोगों की शल्य चिकित्सा के लिए कोई निश्चित उम्र नहीं होती। बच्चों में कुछ हृदय रोग जन्मजात होते हैं जिनकी शल्य चिकित्सा जन्म के कुछ घंटों के पश्चात की जाती है। कन्जेनाईटल हार्ट डिसिस में बच्चे के जन्म के समय हृदय ठीक से विकसित नहीं होता। मां के गर्भ में ही इस बीमारी की शुरूआत हो जाती है। इसका ऑपरेशन जन्म के कुछ अंतराल के बाद ही करना होता है।
एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट जो जन्मजात हृदय की बीमारी होती है उसकी शल्य चिकित्सा के लिए पांच से दस साल तक की उम्र सीमा में इलाज करना होता है। इस बीमारी का पता लगने के बाद निरंतर आब्जर्व करना पड़ता है। दूसरी बीमारी बीएसडी की होती है। इसमें दिल के अंदर अगर बड़ा छेद है तो उसका तुरंत ऑपरेशन करना होता है। इसी प्रकार रयूमैटिक हार्ट में डिसिस होती है जो बचपन में सर्दी-खांसी से होती है। सर्दी-खांसी के बैक्टीरिया के कारण हृदय का वाल्व खराब होना शुरू हाे जाता है। यह बीमारी पांच से सात साल की उम्र में लगती है। पन्द्रह से बीस साल की उम्र होते तक हृदय का वाल्व खराब हो जाता है। वाल्व खराब होने की औसतन उम्र बीस से पैंतालिस वर्ष होती है। इस बीमारी में हृदय का वाल्व बदलना पड़ता है। मेकाहारा के एंडवास कार्डियक इंस्टीट्यूट में हृदय से संबंधित सभी छोटी-बड़ी बीमारियों का इलाज किया जाता है। एक डिजिस और होती है उसे हम कोरोनरी आर्टरी (CAD) डिसिज कहते हैं। पहले यह धारणा थी कि यह बीमारी 40 वर्ष के बाद से होती है लेकिन अब वर्तमान में कोरोनरी हार्ट डिसिज पच्चीस वर्ष की उम्र में भी हो रही है। इसके इलाज के लिए एंजियोप्लाटी और बाईपास सर्जरी की जरूरत होती है।
ऐसा भी कहा जाता है कि दिल की बीमारियां पुरुर्षों की तुलना में महिलाओं में काफी कम होती है यह बात कितनी सही है?
आज की जीवन शैली में यह बात बिल्कुल गलत साबित हो रही है कि महिलाओं में भी हृदय रोगों का औसत पुरुषों के बराबर हो गया है। महिलाओं को विशेषकर अपने हृदय रोगों के प्रति सचेत रहना चाहिए। महिलाएं अधिक जिम्मेदारियों की वजह से अपनी सेहत का ख्याल नहीं रखती।
हमारे खानपान का हृदय पर क्या असर पड़ता है। ऐसा भी कहा जाता है कि आहार ही रोग है और आहार ही इलाज है?
यह बात बिल्कुल सही है कि आहार ही रोग है और आहार ही इलाज़ है। गलत खानपान से हदय को बहुत ज्यादा नुकसान होता है। पहले लोग समय पर सादा भोजन करते थे जिनमें ग्रीन वेजिटेबल शामिल होते थे जो शरीर के साथ हृदय को भी स्वस्थ रखते थे। आजकल फास्ट फूड और रेडी टू ईट का ज़माना है। ज्यादातार फास्ट फूड में सैचुरेटेड फेट होते हैं, जो हृदय की कोरोनरी आर्टरी में जम जाता है। आरामदायक जीवन शैली भी इसके लिए जिम्मेदार है। दूसरी बात यह भी है कि आजकल डायग्नोसिस अच्छी हो गई है और रोग भी बढ़ गए हैं। अच्छी डायग्नोसिस होने के कारण हृदय रोगों का पता चल जाता है ताकि उसका समय पर उपचार किया जा सके।
कई बार ऐसा देखा गया है कि जो लोग शारीरिक रूप से एकदम फिट हैं, कसरत करते हैं और जिम जाते हैं। ऐसे लोगों की भी हार्ट अटैक से मौत हो जाती है। इसके क्या कारण हैं?
यह सही है कि आजकल शारीरिक रूप से फिट लोगों को भी हार्ट अटैक हो जाता है। इसके लिए नियमित कसरत करने से पहले हृदय की जरूर जांच कर लेनी चाहिए। जिसमें मुख्यत: ईसीजी, इको और टीएमटी की जांच होती है। ज्यादातर ऐसे केस इसलिए होते हैं क्योंकि शारीरिक रूप से फिट दिखने वाले लोग अपने शरीर का तो ध्यान रखते हैं लेकिन शरीर को संचालित करने वाले हृदय की सेहत का ध्यान नहीं रखते। दिल की सेहत का भी ध्यान रखना जरूरी है। पहले ऐसा कहा जाता था कि हृदय की बीमारियां केवल बुजुर्गों को होती है लेकिन आज के दौर में हृदय रोगों की कोई उम्र सीमा नहीं है। ऐसा भी माना जाता था कि हृदय की बीमारियां केवल रईसों को होती है क्योांकि उनका खान-पान संतुलित नहीं होता था और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं थे पर आजकल बीमारियां अमीर-गरीब सभी को हो रही है।
हृदय रोगों के इलाज के आजकल लोग EECP पद्धति अपना रहे हैं। हृदय रोग के इलाज में यह पद्धति कितनी कारगर है?
मेडिकल दृष्टिकोण से इस पद्धति को सफल नहीं कहा जा सकता है। यह एक अपवाद हो सकता है कि कुछ मरीज एक सीमित अवधि के लिए ठीक हुए होंगे लेकिन यह कोई सम्पूर्ण और कारगर इलाज नहीं है। इस पद्धति पर अभी तक कोई ठोस रिसर्च नहीं हुई है एवं उन्ही लोगों के लिए रिजर्व है, जिसके हार्ट की बायपास सर्जरी या एन्जियोप्लास्टी नही हो सकती।
अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां हृदय रोगों के इलाज में कितनी कारगर हैं जैसे आयुर्वेद, होम्योपैथ, एक्यूप्रेशर, एक्यूपंचर इत्यादि।
सभी पद्धतियां अपने स्तर पर हृदय रोगों से ग्रसित मरीजों को आंशिक रूप से राहत देती हैं। हृदय रोगों के इलाज के लिए वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। अगर मरीज के लिए इमरजेंसी है तो कोई भी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति काम नहीं आती।
डायबिटिज और हृदय रोगों का आपस में क्या संबंध है। क्या डायबिटिज के रोगियों को हृदय रोगों का खतरा ज्यादा होता है?
जिन लोगों को अनियंत्रित डायबिटिज रहती है उनको हृदय रोगों का खतरा बहुत अधिक रहता है। डायबिटिज के रोगियों को नियमित दवाओं के साथ-साथ अपने खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। डायबिटिज के रोगियों से मैं यह कहना चाहूंगा कि हृदय रोगों की समय-समय पर जांच करवाते रहें और नियमित दवाओं का सेवन करें। डायबिजिट एक तरह से लाईफ स्टाइल डिस्आर्डर की डिजिस है। अपनी लाइफ स्टाइल और खानपान में सुधार कर स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। विभिन्न रोग होने का मुख्य कारण हमारी डाईट से संबंधित है। आजकल आप देखेंगे कि शहरों में जितनी तादाद में रेस्टारेंट खुले हैं उसी अनुपात में हास्पिटल भी बढ़े हैं क्योंकि लोग गलत खानपान से बड़ी संख्या में गंभीर रूप से बीमार हो रहे हैं। डाईट कंट्रोल और फिजिकल फिटनेस से हम स्वस्थ रह सकते हैं।
ओपन हार्ट सर्जरी की आजकल जो नई तकनीक आई है, जिसमें शरीर में एक छेद करके शल्य चिकित्सा की जाती है यह कितनी कारगार है?
इस नवीनतम तकनीक को मिनिमल इनवेसिव कार्डिएक सर्जरी कहते हैं। एमआईसीएस की सुविधा भी एसीआई में है। इस टेक्नीक से हमने एक केस किया था जो सफल रहा। देश के बड़े हार्ट सेंटरों में कोरोनरी बायपास सर्जरी एमआईसीएस टेकनीक से की जा रही है। आजकल हार्ट सर्जरी में रोबोट के इस्तेमाल पर प्रयोग चल रहा है एवं बहुत जल्द ही सफलता मिलने की उम्मीद है।
वर्ष 2024 में आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही?
वर्ष 2024 में मैंने छत्तीसगढ़ का सबसे पहला सुचुरलेस एओर्टिक वाल्व रिप्लेसमेंट किया। 2 इंच छाती में चीरे से 22 वर्षीय मरीज के दिल के छेद को बंद करने की सर्जरी की गई,जिसको MICS कहा जाता है। एक और सर्जरी मैंने की थी जिसे एओर्टिक आर्च डिब्राचिंग सर्जरी कहते है यह भी सफल रही। यह वस्कुलर सर्जरी के अंतर्गत आती है।
चिकित्सा के अपने प्रोफेशनल कैरियर की सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगे?
चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में अपनी सफलताओं का श्रेय मै निश्चित रूप से अपने गुरुओं स्व. सीपी श्रीवास्तव सर को देना चाहूंगा जो एसएमएस हॉस्पिटल जयपुर में मेरी एमसीएच की पढ़ाई के समय में एचओडी थे। इनके साथ प्रो. डॉ.अनिल शर्मा, प्रो डॉ.राजकुमार यादव, प्रो डॉ.आर.एम.माथुर सर, प्रो. संजीव देवगढ़ा सर,एवं केरल में परियारम मेडिकल कॉलेज कन्नूर (सहकारणा हृदयालया) के डॉ. कुलदीप कुमारन सर, डॉ.प्रसाद सुरेंद्रन सर को देना चाहूंगा। डॉ. देवी शेट्टी मेरे प्रेरणास्त्रोत हैं जो नारायणा हृदयालय के निदेशक और चीफ कार्डियक सर्जन हैं।
स्वस्थ जीवन जीन के लिए लोगों को क्या टिप्स देना चाहेंगे?
सबसे पहले बच्चों के दिल की सेहत के लिए कहना चाहूंगा कि जब भी बच्चों को सर्दी-खांसी की शिकायत लम्बे समय तक बनी रहे तो उसे अनदेखा न करें। सभी लोगों को स्वस्थ जीवन जीने के लिए यही कहना चाहूंगा की अपनी लाईफ स्टाइल सही रखें एवं समय पर संतुलित आहर लें। ग्रीन वेजिटेबल खाएं, तले हुए पदार्थ न खाएं, रिफाइंड तेलों का उपयोग बिल्कुल न करें। नान रिफाइंड तेलों का इस्तेमाल कम मात्रा में करें जैसे सरसों, सनफ्लावर, तिल, नारियल, मूंगफली और तिल का तेल। आजकल अलसी का तेल भी लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। हृदय रोगों की जांच नियमित रूप से करवाते रहें। स्ट्रेस से दूर रहें, अपनी सोच सकारात्मक रखें। जितना हो सके रात का भोजन देर से न लें और हल्का भोजन लें। मोबाइल पर अपना स्क्रीन टाईम कम करें ताकि आपकी आंखें भी सुरक्षित रहें। शरीर को डिटाॅक्स करने के साथ मानसिक सेहत के लिए डिजिटल डिटाक्स भी करें। सबसे पहले अपने दिल की सेहत का ध्यान रखें। अपने लिए ध्यान एवं योग के लिए भी समय निकालें।
जब आप अपने द्वारा ठीक हुए मरीजों के चेहरों पर मुस्कान देखते हैं तो आपके क्या इमोशंस होते है?
पीड़ित मरीज जब स्वस्थ होते है तो उनके चेहरों की खुशी मुझे एक अनमोल संतुष्टि देती है। मुझे लगता है इन जरूरतमंद लोगों का इलाज करके मेरा जीवन धन्य हो गया। मरीजों की सेवा ही ज़ुनून है मेरा। ज्यादातर मेकाहारा में गरीब एवं असहाय मरीज आते हैं जिनके पास इलाज की कोई सुविधा नहीं होती एवं जिसका ऑपरेशन नही हो पा रहा है वे बड़ी उम्मीद लेकर मेरे पास आते हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि ईश्वर की अनुकम्पा से मैं उनकी उम्मीदें पूरी कर पाता हूं। इन गरीब मरीजों की दुआ ही मेरा आत्मबल है। अनवरत ऐसे जरूरतमंद मरीजों की सेवा कर उनकी तकलीफ दूर कर उनके जीवन में नई खुशियां ला सकूं यही मेरा लक्ष्य है।