नीरजा आपटे बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। कला के विभिन्न आयामों में उनकी दक्षता उन्हें श्रेष्ठ साबित करती है। उन्होंने 300 के करीब रंगमंचीय प्रस्तुतियां दी हैं जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। वे नीरजा क्रिएशन की संस्थापिका भी हैं। इसके तहत लीक से हटकर हमेशा कुछ नए कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं जिन्हें दर्शकों की बहुत सराहना मिलती है। वे पुणे में रहती हैं और विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों में उनकी सदैव सक्रियता रहती है। एंकर, टीवी, रेडियो, दूरदर्शन एवं थियेटर आर्टिस्ट, स्क्रीन राईटर नीरजा आपटे से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत।थियेटर आर्टिस्ट के रूप में मैंने 300 के करीब रंगमंचीय प्रस्तुतियाँ दी हैं
आप एक सृजनशील व्यक्तित्व और बहुआयामी प्रतिभा की धनी हैं। एंकरिंग के अलावा कला की और किन-किन विधाओं में आपकी सक्रियता रहती है?
एंकरिंग के साथ-साथ मैं संगीत, कविता (लेखन – वाचन), वॉईस ओवर, चित्रकारी, लेखन, व्यक्तित्व विकास, संभाषण कला, पुष्प सज्जा आदि विधाओं में सक्रिय हूँ। शब्द और आवाज़ मेरी अभिवयक्ति के माध्यम हैं।
अपनी सृजनशीलता के प्रारंभिक दौर के बारे कुछ बताईए। आपकी कलात्मक यात्रा कब और कहां से शुरू हुई?
मेरी कला यात्रा का श्रेय सर्व प्रथम मेरी माता को जाता है, जिन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही विभिन्न कला प्रकारों से मेरा परिचय करवाया। रंगोली, चित्रकला, संगीत, खेल, भाषण कला, कविता सभी कुछ सीखने के लिए प्रेरित किया। वे हमेशा मुझे अपने साथ अलग अलग कार्यक्रमों में ले जाती थी! मुझे याद है मैं तीन वर्ष की थी जब मैंने पहली प्रस्तुती दी थी। वे स्वयं एक अच्छी कथक नृत्यांगना रही हैं।
आपकी कलात्मक यात्रा की पहली सफलता कौन सी थी जो आपके लिए हमेशा यादगार रहेगी?
अखिल भारतीय स्तर पर मंचित नाटक में प्रमुख भूमिका के लिए प्रथम पुरस्कार पाना मेरे लिए यादगार पल है।
आप थियेटर आर्टिस्ट भी हैं। थियेटर आर्टिस्ट के रूप में आप अपनी किन उपलब्धियों का उल्लेख करना चाहेंगी?
मुझे लगातार तीन साल राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट अभिनय के लिए पुरस्कार मिला। थियेटर से जुड़े कई बड़े कलाकारों से मिलने का सौभाग्य मिला और उनके आशीर्वाद भी मिले। थियेटर से मेरा जुड़ाव सोला बरस की आयु में हुआ। मैं इंदौर, मध्य प्रदेश की एक जानी मानी संस्था नाट्य- भारती की एक सदस्य बनी या यूँ कह लें की वो मेरा दूसरा घर था। वहाँ हिंदी और मराठी नाटकों में काम करने का मौका मिला। अभिनय के साथ साथ मंच सज्जा, संहिता लेखन, निर्देशन, अनुवाद, संवाद कौशल्य जैसे कई क्षेत्रों का ज्ञान मिला, जिसका आगे चलकर बहुत उपयोग हुआ। थियेटर आर्टिस्ट के रूप में मैंने 300 के करीब रंगमंचीय प्रस्तुतियाँ दी हैं।
मराठी थियेटर को बहुत समृद्ध माना जाता है। मराठी थियेटर की अपनी एक अलग पहचान भी है। मराठी थियेटर की सबसे बड़ी विशेषता आप क्या मानती हैं?
जहाँ तक मराठी रंगभूमी का प्रश्न है तो मराठी संस्कृति में कला के बीज बहुत गहरे हैं। अधिकांश मराठी नाटक लोक संस्कृति से उभरें हैं। इन नाटकों के विषय ही इनकी विशेषता है जैसे कि पौराणिक, ऐतिहासिक और संगीत नाटक समाज प्रबोधन भी मराठी नाटक की विशेषता कही जा सकती है।
वर्तमान परिदृश्य में विभिन्न भाषाओं के थियेटर के दर्शकों की संख्या काफी कम होती जा रही है। थियेटर आर्थिक रूप से भी कलाकारों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता है। इसके क्या कारण आप मानती हैं?
वर्तमान में दर्शकों की कमी का एक कारण है घर बैठे सहज मनोरंजन मिलना। टलीविज़न, सोशल मीडिया की उपलब्धता के कारण नाटक या अन्य परफॉर्मिंग आर्ट्स की ओर दर्शकों का रुझान कम हो रहा है। इसी के साथ सशक्त नाट्य संहिता का अभाव, बढ़ती व्यस्तता, पारंपारिक कलाप्रकार के प्रति उदासीनता दर्शकों को नाटकों से दूर ले जा रही है।
आपने पटकथा लेखन भी किया है। एक सफल पटकथा लेखिका बनने के लिए क्या प्रयास आपको करने पड़े। पटकथा लेखन के क्षेत्र में आप अपनी सबसे बड़ी सफलता क्या मानती हैं?
पटकथा एवं संहिता लेखन के लिए विभिन्न विषयों पर विद्वानों द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन, सामाजिक वातावरण का अवलोकन और लोगों से बातचीत मुझे विषय को समझने में सहायक होती हैं। इस लेखन प्रवास में, ऐसे विषयों पर लिखना जिनका मुझसे कोई सरोकार नहीं था, मेरे लिए चुनौती भी रही और उपलब्धि भी – जैसे दूरदर्शन के डीडी किसान चैनल पर कृषि संबंधित विषयों पर लेखन।
नयी प्रतिभाएं जो पटकथा लेखन में अपना कैरियर बनाना चाहती हैं और बहुत जल्दी सफल होना चाहती हैं, उन्हें अपने अनुभवों के आधार पर क्या सुझाव देना चाहेंगी?
पटकथा लेखन या किसी भी अन्य क्षेत्र में सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। इस क्षेत्र में काम करने के लिए भाषा का ज्ञान, आसपास हो रही घटनाओं पर पैनी नजऱ, मानवीय संबंधो के प्रति जिज्ञासा और संवेदनशीलता आवश्यक है। निरंतर अभ्यास आपको एक सफल पटकथा / संहिता लेखक बनने में सहायता करता है।
आप एक रेडियो और टीवी आर्टिस्ट भी हैं। एक कलाकार के रूप में यह दोनों माध्यम आपके लिये क्या अहमियत रखते हैं?
रेडियो मेरा बचपन से साथी है! उन दिनो रेडियो पर हर शनिवार को बाल सभा कार्यक्रम हुआ करता था जिसका मैं अक्सर एक हिस्सा होती थी। बाद में रेडिओ नाटक, कहानी, वार्ता, साक्षात्कार जैसे कई कार्यक्रम किये। रेडियो पर आपकी आवाज़ की मुख्य भूमिका होती है, किरदार आपकी आवाज से पहचाने जाते हैं। आवाज़ के उतार-चढ़ाव के साथ भावों की अभिव्यक्ति मायने रखती है। टेलीविज़न एक दृश्य-श्रव्य माध्यम है जहां आपकी देहबोली का उपयोग प्रभावी ढंग से किया जाना आवश्यक होता है। कैमरे के सामने काम करने के लिए आपको तकनीक भी मालूम होना जरूरी है। रेडियो या टेलीविज़न ये दोनो माध्यम कलाकार के लिए चुनौती भी है और अपना हुनर लोगों तक पहुचाने का ज़रिया भी। यह कलाकार की प्रतिभा और मेहनत पर निर्भर है कि आप कितना अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं। मेरे लिये मेरी आवाज़ का उपयोग अधिक आनंददायी है और शायद इसीलिए मेरे लिये रेडियो की अहमियत ज्यादा है।
आपका एक शो सहर होने तक बहुत पॉपुलर है। इस शो की क्या विशेषताएं हैं जो दर्शकों को आकर्षित करती हैं?
सहर होने तक ये एक अलाहिदा कार्यक्रम है। उर्दू भाषा, गज़ल मुझे बहुत पसंद हैं। हम सभी ग़ालिब, मीर, दाग जैसे शोरा के नाम जानते हैं लेकिन गज़ल के प्रोग्राम्स करते हुए महसूस हुआ कि शायरात के नाम, उन का काम हम नहीं जानते, बस इसी से शुरू हुआ एक सिलसिला और खोज के बाद बेहतरीन शायरात के कई कलाम मिले जिन्होंने अपने इल्म- ओ- हुनर से खास मकाम हासिल किया है। यह अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है, जिसमें गज़ल, शायरी और कथक का मिलन है। इसे महिला कलाकार ही प्रस्तुत करतीं हैं।
इस शो का नाम आपने सहर होने तक रखा है। इस नाम को किस तरह से परिभाषित करना चाहेंगी?
सहर होने तक यह नाम जिंदगी के उस फलसफे को बयां करता है जिसमें औरत की अहमियत और उसके वजूद को सर्वोपरि माना है -वो आपके साथ चलती है रोशनी मिलने तक, ग़म की अंधेरी रात में वो हौसला देती है, सहर होने तक।
आजकल डिजिटल मिडिया में बहुत सारे नए एंकर्स काम कर रहे हैं। नए एंकर्स में क्या कमियां और खूबियां आप देखती हैं?
आज के ज़माने के नये एंकर्स की खासियत है उनका प्रेेजेन्टेशन। आत्मविश्वास से भरपूर और उनमे कुछ नया करने की चाह होती है। लेकिन कहीं न कहीं तैयारी में कमी व भाषा और विषय का अधूरा ज्ञान उनकी प्रस्तुती को बेरंग करता है।
आप बहुत सजींदगी और अपनी सहज मुस्कान के साथ सारे प्रोग्राम्स प्रस्तुत करती हैं। यह सजींदगी और सहजता स्वाभाविक है या आपने सीखी?
मेरी सहज मुस्कान और मधुर आवाज़ ईश्वर प्रदत्त है। प्रस्तुति में सौम्यता, सहजता, संजीदगी अभ्यास, अनुभव और स्वयं के कौशल व परिश्रम से विकसित की है।
आपके शहर पुणे को सांस्कृतिक धरोहर भी कहा जाता है। पूणे के कौन से सांस्कृतिक कार्यक्रम आपको सर्वाधिक प्रिय हैं?
जी हां, पुणे शहर न सिर्फ सांस्कृतिक अपितु औद्योगिक व शैक्षणिक नगरी भी है। प्रतिष्ठित सवाई गंधर्व महोत्सव, वसंतोत्सव, नृत्य महोत्सव व गणेशोत्सव मेरे प्रिय कार्यक्रम हैं।
आपके व्यक्तित्व में सबसे गहरी छाप किनकी है?
मेरी माँ और विभिन्न क्षेत्रों के ऋ षितुल्य व्यक्तित्व जिनका आशिर्वाद मुझे हमेशा मिला। वही आदर्श मेरे व्यक्तित्व में नजऱ आते हैं।
आपने देश के साथ-साथ विदेशों में भी मंच संचालन किया है। विदेशों में रहने वाले भारतीय अपने देश और यहां के सांस्कृतिक कार्यक्रमों से कितना प्यार करते हैं?
मैं सौभाग्यशाली हूं कि देश विदेश में मुझे दर्शकों का प्यार और सराहना प्राप्त हुई है। विदेशों में रहने वाले भारतीय दर्शक अपने देश से बेहद प्यार करते हैं और वहाँ आनेवाले हर कलाकार का सम्मान करते हैं। वहाँ प्रस्तुत होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम उनके लिए देश की मिट्टी से जुडऩे का अनूठा अनुभव होता है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कई कलाकारों के कार्यक्रमों का आपने संचालन किया है। किन बड़ी हस्तियों का नाम आप लेना चाहेंगी जिनके कार्यक्रमों का संचानल आपके लिए गर्व की बात है?
मेरी कला यात्रा में कई दिग्गज कलाकारों के साथ काम करने का सु-अवसर मिला और उनके आशीष प्राप्त हुए। विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूँगी आदरणीय भारतरत्न लता मंगेशकर, गान सरस्वती किशोरी ताई आमोनकर, स्वर मार्तंड पंडित जसराज, पंडित शिवकुमार शर्मा, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, उस्ताद जाकिर हुसैन, उस्ताद अमजद अली खान, पंडित बिरजू महाराज, स्वर योगिनी डॉ. प्रभा अत्रे शामिल हैं।
पूणे फेस्टिवल एक बड़ा और चर्चित फेस्टिवल है। इस फेस्टिवल से आप किस तरह से जुड़ी हुई हैं। पूणे फेस्टिवल के क्या आकर्षण हैं?
एक एंकर के रूप में पुणे फेस्टिवल में मेरा सहभाग रहा है। पुणे फेस्टिवल विगत तीन दशकों से पुणे शहर की शान है। श्री गणेश के आगमन के साथ पुणे फेस्टिवल का शुभारंभ होता है जिसमें लगातार 12 दिनों तक दिग्गज कलाकारों द्वारा शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, नृत्य- संगीत की मनोहारी प्रस्तुतियां दी जाती हैं। प्रमुख आकर्षण विख्यात अभिनेत्री व नृत्यांगना सुश्री हेमा मालिनी द्वारा गणेश वंदना एवं बैले इसका प्रमुख आकर्षण होता है।
आप एक प्रतिष्ठित संस्था हिन्दी से प्यार है से भी संबद्ध हैं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए इसके तहत किस तरह के कार्य संचालित होते हैं, इसमें आपकी क्या भूमिका रहती है?
हिन्दी से प्यार है यह समूह संपूर्ण विश्व मे हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार और प्रसार के महत्वपूर्ण कार्य हेतु गठित किया गया है। मेरा परिचय इस समूह के प्रमुख श्री अनुप भार्गव जी से विश्वरंग यूएसए ऑनलाईन कार्यक्रम के दौरान हुआ और हिन्दी से प्यार है समूह से मैं भी जुड़ गई। वैश्विक मंच पर हमारे साहित्यकारों की पहचान कराने के लिए व उनके व्यक्तित्व की विशिष्ट जानकारी के लिए साहित्यकार तिथी वार यह पहली परियोजना बनी जो सफलतापूर्वक चल रही है, जिसमे वर्ष के सभी 365 दिनों में महत्वपूर्ण तिथि पर आभासी पटल पर रोचक ढंग से लिखे आलेख प्रकाशित किये जाते हैं। हिंदी से प्यार है समूह से विश्वभर से 400 लोग जुडे हैं।
दूसरी परियोजना न्यूयॉर्क के भारतीय कौन्सिलावास के सहयोग से उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर अनन्य नाम से पत्रिका का प्रकाशन एवं अन्य अनेक योजनाये हैं। मुझे गर्व है की मैं हिंदी से प्यार है समूह की सदस्य हूँ। साहित्यकार तिथीवार इस परियोजना में थोड़ा लेखन और आलेखों को अपनी आवाज़ में प्रस्तुत करने में मेरा सहभाग है। जो लोग हिंदी नहीं पढ़ सकते वे इन रचनाओं को सुनकर आनंद ले सकते है। हिंदी से प्यार है समूह की सभी परियोजनाओं में जहां जरूरत होती है वहाँ हर सदस्य सहयोग के लिए तत्पर होता है।
नीरजा क्रिएशन शुरू करने का उद्देश लीक से हटकर कुछ कार्यक्रमों की निर्मिती करने का था, जिसमे अच्छा साहित्य, अलग विषय और प्रस्तुती का अनूठा अंदाज हो। नीरजा क्रिएशन की प्रमुख प्रस्तुतियाँ हैं – कवी, कलम और हम – हिन्दी के मूर्धन्य कवी, साहित्यकारों की रचनाये नृत्य व संगीत के साथ प्रस्तुत होती हैं, स्वर नाट्य ब्रह्म – (मराठी संगीत नाट्य परंपरा की सुरीली प्रस्तुती), सहर होने तक – बज़्म-ए-शायरात – महिला कलाकारों की हिंदी और उर्दू में रचित चुनिंदा गज़़लें। ये तीनों ही संकल्पनाये अपनी विशिष्ट पहचान के साथ लोकप्रिय हुई हैं। लॉक डाऊन में कलाकारो की हौसला अफजाई के लिए नीरजा क्रिएशन द्वारा ऑनलाइन तीन महिने तक रोज एक अलग कलाकार द्वारा प्रस्तुति दी गई, जिसमें गायन वादन नृत्य सभी था। देश विदेश के 100 से ज्यादा कलाकार इस मे सहभागी थे। इस संकल्पना को रसिक जनों की सराहना मिली और यह कोशिश कामयाब हुई।हमारे देश में कई विवाहित महिलाएं पारिवारिक और सामाजिक बंधनों के कारण अपनी कला को सामने नहीं ला पाती। ऐसी प्रतिभावान महिलाओं से आप क्या कहना चाहेंगी। ऐसी महिलाएं आपसे संपर्क करें तो क्या आप उन्हें मार्गदर्शन देना चाहेंगी?
जी हाँ, ऐसा कई बार होता है, लेकिन अगर आप कुछ करना चाहती हैं तो प्रयास स्वयं को ही करने होंगे। पारिवारिक और सामाजिक बंधनों से सामना करना सीखना होगा। अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहकर आप अपने कला संसार का विस्तार कर सकती हैं। घर बाहर में सामंजस्य रखकर अपनी प्राथमिकता को समझना होगा। मैं चाहती हूँ कि महिलाएँ अपनी कला और प्रतिभा से नये आकाश में उड़ान भरें और हर संभव मेरी यही कोशिश रहती है कि मैं उन्हें मदद कर सकूँ। अगर मेरी बात से किसी का कला जीवन निखरता है तो मुझे आनंद ही होगा। कोई भी मुझसे अवश्य संपर्क कर सकता है।समाज मे नारी को पुरुषों के बराबर दर्जा देने की बात तो कही जाती है पर वास्तविकता इसके विपरीत है। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिदृश्य में महिलाओं को अपनी क्षमता दिखाने के लिए क्या प्रयास करने चाहिए?
सामाजिक-आर्थिक व राजनीतिक परिदृश्य में अब काफी हद तक महिलाये सफलता से कार्य कर रही है। लेकिन जहां असमानता या अन्य मुद्दे हैं वहाँ महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए मुखर होना आवश्यक है। कई बार स्वयम् की क्षमता और अधिकारों के प्रति अनभिज्ञता भी इसका एक कारण होता है। मेरा मानना है की आप जिस किसी भी क्षेत्र मे काम करती हों, उसकी सभी बारीकियों से अवगत होना, नई बातों के प्रति अपडेट रखना, स्वयं के व्यक्तित्व और बातचीत को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना यही महिलाओं के लिये सफल होने का एक मंत्र है। अपने ज्ञान का सही इस्तेमाल, आत्मविश्वास और प्रतिभा से महिला हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकती है।
एक सफल कलाकार के रूप में आपके जीवन में धर्म और आध्यात्म का कैसा प्रभाव है। अपने जीवन में धर्म और आध्यात्म को किस रूप में आप देखती हैं। एक कलाकार के लिये धार्मिक होना जरूरी है या आध्यात्मिक?
चाहे कलाकार हो या सामान्य व्यक्ति, सभी को जीवन मे उतार-चढ़ाव से गुजरना पडता है। ऐसे समय मे उसका संतुलन बना रहने में उसकी आध्यात्मिक सोच व अभ्यास महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मेरी कोई विशेष धार्मिक मान्यता नहीं है, लेकिन आचार विचार, स्वभाव व्यवहार में प्रेम, दया, सेवा, मानवता का होना मेरे लिए धर्म है। एक कलाकार के लिए बहुत आवश्यक है आध्यात्मिक स्तर पर सशक्त होना क्योंकि आपके व्यक्तित्व में आपकी सोच और आस्था के चिन्ह दिखते हैं।
आप अपनी सृजनात्मक सफलताओं का श्रेय किसे देना चाहेंगी?
मेरी कला यात्रा का आरंभ माँ ने किया लेकिन आज मैं जहाँ हूँ उसका संपूर्ण श्रेय मेरे जीवन साथी धीरेंद्र को देती हूँ जिन्होंने मेरे हर निर्णय, हर प्रयास का सम्मान किया और संपूर्ण सहयोग के साथ मेरे कलाप्रवाह को एक सुंदर मोड दिया। मेरे बच्चों निकिता और क्षितीज का भी जिक्र करना चाहती हूँ जो मेरा संबल हैं और जरूरी हो वहाँ अपनी बेबाक राय भी देते हैं। एक संवेदनशील कलाकार की प्रगति के लिये परिवार का प्रोत्साहन और विश्वास सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ऐसा मैं मानतीं हूँ।