अंतिम छोर के व्यक्ति तक हेल्थकेयर सेवाएं पहुंचाना मेरे जीवन का लक्ष्य है। रही संतुष्टि की बात, तो आप सेवा चाहे जितनी भी कर लो, एक सच्चा सेवाभावी कभी संतुष्ट नहीं होता। अंतिम सांस तक कमजोर तबके के लोगों की मैं सेवा करता रहूंगा।
प्रो. डॉ.अजय सहाय
चिकित्सा, समाजसेवा और सिनेमा के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है। उन्होंने रायपुर में सहाय हॉस्पिटल की स्थापना की है। सहाय हॉस्पिटल एक ऐसा हॉस्पिटल है जिसका मकसद केवल पैसे कमाना नहीं है। दिन रात की परवाह किए बिना अजय सहाय मरीजों की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। उन्होंने अपने चिकित्सा कौशल से (हजारों) पीड़ित मरीजों को नया जीवन दिया है। समाजसेवा के क्षेत्र में उनका काम अतुलनीय है। छत्तीसगढ़ के सुदूर बस्तर अंचल के रिमोट एरिया में जहां पहुंच पाना भी बहुत मुश्किल है वहां जा कर वे वंचित लोगों का निःशुल्क इलाज करते हैं। सबसे बड़ी बात है कि समाजसेवा के लिए किसी से कोई आर्थिक सहायता नहीं लेते। सिनेमा के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना अभिनय कौशल दिखाया है। उन्होंने हिंदी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, उड़िया, तमिल और कुछेक विदेशी फीचर फिल्मों और शॉर्ट फिल्मों में अभिनय किया है। सिनेमा में सकारत्मक और नकारात्मक भूमिकाओं में दर्शकों का भरपूर सराहना मिली है। उनके द्वारा लिखित और निर्देशित लघु फिल्मों को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। फिल्मों में उत्कृष्ट अभिनय के लिए उन्हें प्रादेशिक और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
कॉरपोरेट इनसाइट मैगज़ीन की कवर स्टोरी के लिए डॉ. सहाय के जीवन के विभिन्नन पहलुओं पर खास बातचीत।
चिकित्सा के क्षेत्र में आपकी राष्ट्रिय स्तर पर एक विशिष्ट पहचान है। आपने अनेक लोगों को नया जीवन दिया है। एक चिकित्सक के रूप में अपने दायित्वों को पूरा करने में क्या चुनौतियां आपके सामने रहती हैं?
ये वो समय नहीं रहा जब डॉक्टर को भगवान का रूप माना जाता था। भगवान की यह कुर्सी अब खसक चुकी है। मेडिकल प्रोफेशन अब मेडिकोलीगल प्रोफेशन बन चुका है। मरीज अब अस्पताल जाने से पहले गूगल और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से अपनी बीमारी के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। अपना बीपी, ब्लड शुगर आदि घर में ही टेस्ट कर लेते हैं। लेकिन अधूरा ज्ञान और ऐसे टेस्ट्स के लिमिटेशंस के बारे में उन्हें पूर्ण जानकारी नहीं होती। इस वजह से डॉक्टर्स से वाद विवाद होता है। छुटभैये और अवसरवादी नेता अपने स्वार्थ की रोटी सेकने के लिए अस्पतालों में बात बात में धरना प्रदर्शन करने से नहीं चूकते। आधी जिंदगी और अपने मां बाप की सारी पूंजी लगाने के बाद जब छात्र डॉक्टर बनता है और उसके साथ ऐसा सुलूक होता है तो उसकी सेवा भावना भी आहत होती है। शायद यही कारण है कि बहुत से डॉक्टर्स अपने बच्चों को इस पेशे में भेजने से कतराने लगे हैं।
एक चिकित्सक के रूप आपके पास अनेकों शैक्षणिक योग्यताएं हैं। आपकी शैक्षणिक योग्यताएं के बारे में जानना चाहेंगे। विभिन्न योग्यताएं आपने कैसे हासिल की?
यह सही है कि मैने विभिन्न मेडिकल और नॉन मेडिकल विषयों में दो दर्जन से ज्यादा डिग्रियां, डिप्लोमा और फेलोशिप्स हासिल की हैं, जिनमें MBBS, MD Medicine, PhD, DLitt, ह्यूमन राइट्स में डॉक्टरेट, कार्डियोलॉजी, डायबिटोलॉजी और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में उच्च शिक्षा शामिल हैं। अनेकों विख्यात संस्थाओं द्वारा मुझे लगभग एक दर्जन ऑनरेरी डॉक्टरेट्स ( Honoris Causa) की मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया है। हालांकि इसे मुझे पढ़ने की भूख कह सकते हैं, लेकिन यह भी सच है कि मेडिकल प्रोफेशन में डॉक्टर्स को बहुत पढ़ना पड़ता है, ताकि अपने आप को लगातार अपडेट करते रहें। इस पेशे में इतनी तेजी से नए नए रिसर्च होते हैं कि जो ज्ञान हमने सुबह प्राप्त किया था, वो शाम तक पुराना हो जाता है।
आपने रायपुर में जरूरत मंद मरीजों के लिए सहाय हॉस्पिटल की स्थापना की। आपके मरीज़ आपको मसीहा मानते हैं। सहाय हॉस्पिटल का विजन और मिशन क्या है?
मरीज़ मुझे अपने बीच का “आदमी” मानते हैं, ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है। हॉस्पिटल बनाने का उद्देश्य लोगों को न्यूनतम दरों पर या आर्थिक रूप से कमजोर लोगो को उत्तम क्वालिटी की स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना था जिसमें हम सफल रहे। हर कोई लंबे समय तक जीना चाहता है लेकिन सही समय पर सही इलाज न मिलने के कारण ऐसा हो नहीं पाता। बड़े अस्पतालों का खर्चा निर्धन लोग उठा नहीं पाते, सरकारी अस्पतालों में उन्हें संतुष्टि मिले यह भी जरूरी नहीं।
चिकित्सक के रूप में प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर में आपकी अनेकों पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है। ऐसे कुछ पुरस्कारों के बारे में बताइए जिन्हें आप अपने जीवन की उपलब्धि मानते हैं?
हर एक पुरस्कार या सम्मान महत्वपूर्ण होता है चाहे वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हो, या राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर का। ये पुरस्कार न केवल हमें अपने कार्यों का आंकलन करने का अवसर प्रदान करते हैं बल्कि और मुस्तैदी से काम करने के लिए उत्साहित करते हैं। मैं अत्यंत सौभाग्यशाली हूं जो चिकित्सा, समाज सेवा और सिनेमा हर क्षेत्र में हर स्तर पर सम्मानित हुआ।
चिकित्सा के क्षेत्र में बेस्ट डॉक्टर ऑफ इंडिया अवॉर्ड, लीडर्स ऑफ हेल्थकेयर अवार्ड, डॉ. बी सी रॉय अवार्ड जैसे राष्ट्रीय सम्मान उल्लेखनीय हैं। अति विशिष्ट समाज सेवाओं के लिए पूर्व राष्ट्रपति माननीय रामनाथ कोविंद द्वारा आंबेडकर पुरस्कार और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जाना मेरे लिए गर्व की बात है। सिनेमा के क्षेत्र में बेहद प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के अकादमी पुरस्कार मेरे जीवन में मील का पत्थर साबित हुआ। समाज में कानून के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से आयोजित दूसरे और तीसरे राष्ट्रीय शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल्स में मेरे द्वारा लिखित, निर्मित और निर्देशित शॉर्ट फिल्मों “कैसे बताऊं” और “नोनी” को हाइ कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीशों द्वारा प्रथम पुरस्कार से नवाजा जाना मेरे जीवन की अहम उपलब्धियां हैं। इनमें मुझे सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक के राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।
आप एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। आपने सकारात्मक और नकारात्मक भूमिकाएं बखूबी अभिनीत की हैं।आपकी सर्वाधिक चर्चित सकारात्मक और नकारात्मक भूमिकाओं वाली फिल्मों के बारे में बताइए। फिल्मों के निर्देशक कौन थे?
ज्यादातर सकारत्मक भूमिकाएं ही निभाई क्योंकि लोग इनसे ज्यादा प्रभावित और प्रेरित होते हैं। सलीम खान द्वारा निर्देशित फिल्म “ बाप बड़े न भैया, सबले बड़े रुपैया “ में नेगेटिव भूमिका के लिए मुझे सर्वश्रेष्ठ विलेन का पुरस्कार मिला। स्व. एजाज वारसी द्वारा निर्देशित फिल्म “ कहर” के लिए मुझे सर्वश्रेष्ठ चरित्र अभिनेता का पुरस्कार मिला। शॉर्ट फिल्म “नन्ही परी” के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का और शॉर्ट फिल्म “नोनी” के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।ये दोनों पुरस्कार मुझे हाइ कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीशों के द्वारा प्राप्त हुए।
आप मरीजों की सेवा के लिए अनवरत तत्पर रहते हैं। अन्य चिकित्सकों की तरह आप प्रोफेशनल भी नहीं है। आप सिर्फ सेवाभाव को प्राथमिकता देते हैं। ऐसी सोच और इच्छाशक्ति आपमें कैसे आई?
मैने गरीबी को पास से देखा है। गरीबों के मायूस चेहरों को पढ़ा है। पानी की बूंदों और लाचार के आंसुओं में अंतर करना सीखा है। बस , इतना ही काफी था कि मैं असहाय लोगो को एहसास करवाऊं कि मैं उनके साथ खड़ा हूं। वैसे भी एक सीमा के बाद पैसों की जिंदगी में कोई आवश्कता नहीं रह जाती। जब सब कुछ यही छोड़ कर जाना है तो उसे अगर लोगो की सेवा में लगा दिया जाए तो इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता।
समाजसेवी के रूप मे आपने छत्तीसगढ़ के सुदूर माओवादी अंचल को ही प्राथमिकता क्यों दी। इन दुर्गम क्षेत्रों में वंचित लोगों को सेवा में क्या कठिनाइयां आपके सामने आईं।आज के दौर में वहां के वंचित लोगों का कैसा जीवन स्तर आपने देखा?
मैने देखा कि दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले लोग निर्धनता, साधनविहीनता और अज्ञानता के कारण बीमार तो ज्यादा पड़ते ही हैं, साथ ही उनकी मृत्युदर भी ज्यादा होती है। जिंदगी दोबारा नहीं मिलती। हर कोई अधिक से अधिक उम्र तक जीना चाहता है। इन्हीं बातों को संज्ञान में लेते हुए मैने दूरस्थ, दुर्गम, ट्राइबल और नक्सल प्रभावित इलाकों में जाकर अंतिम छोर के व्यक्ति तक हेल्थकेयर सेवाएं पहुंचने का प्रण लिया। साथ ही उन्हें सामान्य बीमारियों और सामाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूक बनाने के लिए जागरूकता अभियानों का भी आयोजन किया। जरूरतमंद विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए स्टेशनरी और स्पोर्ट्स आइटम्स, चरण पादुकाएं, छतरियां, टिफिन बॉक्स, सेनेटरी नैपकिन्स आदि का निः शुल्क वितरण इन अभियानों का हिस्सा होते हैं। जहां हम नहीं पहुंच सके, वहां दूरदर्शन के माध्यम से पहुंचने का प्रयास किया। टेलीविजन की पहुंच घर घर तक है और मेरे द्वारा बनाए गए इंफोटेनमेंट कार्यक्रम ने लोगों के दिलो दिमाग में गहरी छाप छोड़ी है। वर्तमान में इनके जीवन स्तर में उल्लेखनीय सुधार आया है। शासन द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रदत्त सुविधाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अभिनय करने का ज़नून आपने कैसे आया। चिकित्सा के गम्भीर पेशे के साथ अभिनय के लिए समय प्रबंधन कैसे कर पाते हैं?
बचपन की नौटंकियों ने उम्र के इस पड़ाव में सिने अभिनेता बना दिया। चिकित्सा एक गंभीर पेशा है। लेकिन किसी गंभीर काम को करने के लिए जरूरी नहीं कि आप गैर – गंभीर न कर सकें। सब कुछ इसी जन्म में करना है।लेकिन मेडिकल प्रोफेशन और सिनेमा दोनों फुल टाइम जॉब हैं। इसलिए समय निकाल पाना बहुत कठिन होता है।एक तरफ सीरियस मरीज़ को छोड़कर हम नहीं हट सकते, वही दूसरी ओर शूटिंग में एक बार कोई विशेष मेकअप लेने के बाद आप बीच में नही जा सकते। इसलिए बहुत सारे एडजस्टमेंट करने पड़ते हैं।
समाजसेवी के रूप में आपके जीवन के क्या लक्ष्य हैं। अपनी अब तक की समाजसेवा से आप कितने संतुष्ट हैं?
अंतिम छोर के व्यक्ति तक हेल्थकेयर सेवाएं पहुंचाना मेरे जीवन का लक्ष्य है। रही संतुष्टि की बात, तो आप सेवा चाहे जितनी भी कर लो, एक सच्चा सेवाभावी कभी संतुष्ट नहीं होता। अंतिम सांस तक कमजोर तबके के लोगों की मैं सेवा करता रहूंगा।
आपके सामाजिक कार्यों के लिए क्या छत्तीसगढ़ शासन से कोई आर्थिक सहायता मिलती है?
न बाबा न मैने कभी कोई सुविधा या सहायता मांगी, न ही शासन द्वारा दी गई। मैं सक्षम हूं।
वर्तमान परिदृश्य में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का कैसा स्तर आप देखते हैं। इंडस्ट्री के विकास के लिए शासन से कैसी अपेक्षाएं हैं?
पच्चीस वर्षों में इंडस्ट्री तेजी से तरक्की कर चुकी है। एक से एक उम्दा फिल्में बन रही हैं। वैसे भी छत्तीसगढ़ कलाकारों की खान है। शासन द्वारा बार बार फिल्म सिटी के निर्माण की घोषणा की जाती रही है लेकिन इसके निर्माण की गति धीमी है।
इन दिनों जितनी छत्तीसगढ़ी फिल्में बन रही हैं उनमें से बहुत कम फिल्में व्यवसायिक रूप से सफल हो पाती हैं। इसके पीछे क्या कारण आप मानते हैं?
फिल्में तो आजकल एक से बढ़कर एक बन रही हैं लेकिन दर्शकों की अपनी भाषा और बोली के प्रति उदासीनता एक बहुत बड़ा कारण है। आम जनता उन्हीं निर्माता निर्देशकों की फिल्में देखना पसंद करते हैं जो पहले सुपरहिट फिल्में बना चुके हैं।
बहुत सारी कलात्मक गतिविधियों में सक्रियता के बावजूद आप अपने लिए समय कैसे निकाल पाते है?
जहां चाह वहां राह।
अभिनेता के साथ साथ आप लेखक, निर्देशक और निर्माता भी हैं। आपके द्वारा लिखित और निर्देशित महत्वपूर्ण पुरस्कृत प्रोजेक्ट्स के बारे में जानना चाहेंगे?
सौ से ज्यादा शॉर्ट फिल्मों, प्रोमोज, डॉक्यूमेंट्रीज, एल्बम्स, और इंफोटेनमेंट कार्यक्रमों का लेखन और निर्देशन कर चुका हूं। नन्ही परी, कैसे बताऊं, नोनी, डरो मत, चंगुल, ज़ख्म जैसी शॉर्ट फिल्में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुईं। लाडली, आदमी, उन्नीस साल का लड़का जैसी अनेक टेली फिल्में दूरदर्शन की नेशनल चैनल पर प्रसारित हुई। स्वच्छ भारत अभियान पर केंद्रित डीडी किसान द्वारा प्रसारित धारावाहिक परिवर्तन का निर्देशन मैने ही किया था।
अपने समय की बेहद प्रसिद्ध दूरदर्शन की स्वास्थ्य पत्रिका “कल्याणी” के अनेक महत्वपूर्ण सेगमेंट्स का लेखन और निर्देशन मेरे द्वारा किया गया था। बताना लाज़मी होगा कि कल्याणी को बिल गेट्स मलेरिया इंटरनेशनल अवार्ड प्राप्त हुआ था। इसका नामांकन “रोज डी ओर” अवार्ड के लिए भी हुआ था। यह स्विस अवार्ड टेलीवीज़न की दुनिया में ऑस्कर के समकक्ष माना जाता है।
आपके जीवन का लक्ष्य क्या है। चिकित्सा आपकी प्राथमिकता है या कलात्मक गतिविधियां?
चिकित्सा मेरा पेशा है और अभिनय मेरा शौक। आखिरी सांस तक दोनों से विमुख नहीं हो सकता।