अचीवर इनसाईट
जब आप शीर्ष पर पहुंच जाते हैं तो शून्य पर पहुंच जाते हैं :मेघा परमार
माउन्ट एवरेस्ट फतह करने वाली पर्वतारोही मेघा
परमार से गुरबीर सिंघ चावला की विशेष बातचीत।
अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और शिक्षा के बारे में कुछ बताईए। आपकी शैक्षणिक योग्यता क्या है?
मैं भोजनगर मध्यप्रदेश की रहने वाली हूं। परिवार में मम्मी-पापा और छोटा भाई है। शैक्षणिक उपलब्धियों की बात करें तो मैंने बीसीए, एमएसडब्ल्यू और एम.एस.सी. (योगा) का कोर्स किया है। वर्तमान में योगा में पीएचडी कर रही हूं। पर्वतारोहण में मैंने बेसिक माउन्टेनयरिंग कोर्स, एडवांस माउंटेनयरिंग कोर्स किया है। स्कूबा डायविंग में भी मैंने प्रशिक्षण लिया।
पर्वतारोही बनने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
मुझे मेरे भाईयों के पास भेजा गया था पढऩे के लिए। जब हम संयुक्त परिवार में रह रहे थे। कालेज की पढ़ाई के दौरान मैंने अखबारों में पढ़ा की दो लड़को ने माउंट एवरेस्ट की लिए सबमिट किया है। यह खबर पढ़ कर मुझे लगा कि लड़के माउंट एवरेस्ट में चढऩे का टारगेट हासिल कर सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं।
उन लड़कियों में मैं एक क्यों नहीं हो सकती। उस खबर ने मुझे प्रेरित किया कि मुझे माउंट एवरेस्ट छूना ही है। इस शिखर तक पहुंचना ही है। मेरा स्वभाव काफी जिद्दी किस्म का है इसलिए मैंने ठान लिया कि पर्वतारोहण को अपना कैरियर बनाना है और माउंट एवरेस्ट में फतह करना है। अपनी टीचर्स से भी बहुत प्रेरणा मिली कि तुम अपना टारगेट हासिल करो।
जब आपके परिवार वालों को पता चला कि आप पर्वतारोही बन कर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को छूना चाहती हैं तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
जहां तके घर वालों किन प्रतिक्रिया की बात है तो उन्हें यह तो पता भी नहीं था कि पर्वतारोहण होता क्या है। उनको अपने पर्वतारोहण की पहल के लिए मनाना बहुत आसान नहीं था।
मैंने उनसे कहा कि मैं माउंट एवरेस्ट चढ़ जाऊंगी तो मेरी सरकारी नौकरी लग जाएगी। मेरे आत्मविश्वास और इच्छा को देखते हुए वे मान गए कि मैं इस कार्य के लिए अपने प्रयास शुरू कर दूं।
पर्वतारोहण का प्रशिक्षण आपने कहां से लिया यह आपके लिए यह कितना चैलेजिंग रहा?
पर्वतारोहण का प्रशिक्षण बहुत कठिन होता हैा। यह इसमें सेमी कमांडो ट्रेनिंग जैसा होता है। बर्फीली जगह में रेसलिंग, जुमारिंग करना सिखाया जाता है। साफ्ट आईस (बर्फ) और ब्लू आईस में, ब्लैक आईस में कैसे चलना है यह सिखाया जाता है। माउन्टेयरिंग का कोर्स बहुत ही कठिन होता है। मैंने अटलबिहारी माउन्टेनयरिंग इंस्टीट्यूट से कोर्स किया है। इसके बाद हिमालयन स्कूल ऑफ माउन्टेनयरिंग से भी कोर्स किया। प्रशिक्षण के दौरान बर्फीले पहाड़ों पर कई दिनों तक रहना पड़ता है और वहां के कई डिग्री माइनस डिग्री तापमान के अनुसार अपने आपको ढालना होता है।
आपने पर्वतारोहण को अपने कैरियर में माउंट एवरेस्ट किन पहले प्रयास में ही छू लिया या इसके लिए कई प्रयास आपको करने पड़े?
अपने पहले प्रयास में मैं माउन्ट एवरेस्ट नहीं पहुंच पाई थी। दो महीने तक एक्सपीटिशन होता है। चार कैम्प होते हैं। बड़ी-बड़ी चट्टाने पार करनी होती है। कई बार लाशों के ऊपर से गुजरना पड़ता है। 7900 मीटर के बाद तापमान माइनस 52 डिग्री तापमान हो जाता है। यहां पर सप्लीमेंट ऑक्सीजन लेना पड़ता है। यह ऑक्सीजन भी गिन-गिन कर लेना होता है इसे तीन सेकेंड में लेना और छह सेकंड में छोडऩा होता है। सामान्य जीवन में हमारी सांसों की कोई गिनती ही नहीं होती और पर्वतारोहण में अपनी सांसे हमें गिन-गिन कर लेनी होती है। केवल सात सौ मीटर से मेरा पहला प्रयास सफल नहीं हो पाया था। वापस आते वक्त मेरी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। नौ महीने मुझे बिस्तर पर काटने पड़े। ठीक होने के बाद मैंने दोबारा प्रयास किया। 22 मई 2019 से सुबह पांच बजे मैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली मध्यप्रदेश की पहली लड़की थी। यह मेरे जीवन का सबसे गौरवमयी पल है।
एक सफल पर्वतारोही बनने औऱ अपने लक्ष्य को पाने के लिए किन विशेषताओं का होना जरूरी है?
सफल पर्वतारोही बनने के लिए सबसे पहले तो आपको दिल से पर्वत से प्यार होना चाहिए। कोई भी पर्वतारोही एक भी प्लास्टिक की पन्नी तक नहीं फेकता पहाड़ में। पहाड़ आपको बदल देता है। पर्वतों का एक यह नियम है कि कभी वह कमजोर पर्वतारोही को भी चढऩे देता है और कई बार दिग्गज पर्वतारोही को भी चढऩे में असफल हो जाते हैं। पर्वतारोहण में सफलता के लिए पर्वत के प्रति पूरी आस्था और प्रेम होना चाहिए।
महिलाओं के लिए पर्वतारोहण करना कितना चुनौतीपूर्ण मानती हैं। आपके क्या अनुभव रहे?
महिलाओं के लिए पर्वतारोहण बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है। पहाड़ों पर रहने के दौरान महिलाओं दो महीनों तक पीरीएड्स रहते हैं। हारमोन्स में बहुत बदलाव आ जाते हैं। रक्त का रंग भी पीला हो जाता है। शरीर में काफी दाने हो जाते हैं। पूरे शरीर के लिए विपरीत परिस्थितियां हो जाती है। उसमें स्वयं को सम्हालना होता है। मैं यह मानती हूं कि पर्वत में कोई स्त्री या पुरुष नहीं होता। केवल इंसान होता है। अपनी मानसिक और शारीरिक स्थिति को समझना और मजबूत करना हमें पर्वत ही सिखाते हैं। जब कोई अपने आत्मबल और साहस से पर्वत की चोटी को स्पर्श कर लेता है तो उसके लिए जीवन में आने वाली छोटी-मोटी कठिनाईयां कोई मायने नहीं रखती। पर्वतारोहण ने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद मजबूत बना दिया है।
अपने पर्वतारोहण के दौरान भारत के अलावा और किन देशों के पर्वतों के शिखर को स्पर्श किया है?
मैंने चार महाद्वीपों के पर्वतों केशिखर को छुआ है। पर्वतों ने मुझे बिलकुल बदल दिया है। मुझे अफ्रीका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, साउथ अमेरिका के पर्वतों के शिखरों को छूने का सौभाग्य मिला है। पर्वतारोहण में मैंने आधी दुनिया देखी है। सभी महाद्वीपों के पर्वतो के अलग-अलग अनुभव मुझे हुए। पर्वतों में रहते हुए मुझे जो अंदर से अनुभूति होती है वह अनमोल है। पर्वतों के शिखर पर पहुंच कर लगता है कि सारे पहाड़ छोटे-छोटे हो गए हैं। पर्वतों के ऊपर आसमान हैं और भगवान है। यह एहसास होता है की ‘आज मैं ऊपर और आसमां नीचे। एवरेस्ट पर जब मैं पहुंची तो सूरज की किरणें सतरंगी नजर आ रही थी। माइनस 52 डिग्री का नतापमान था। सबसे यादगार अनुभव अपने देश के पर्वत का रहा जब मैं अपने देश का झंडा लेकर एवरेस्ट चोटी पर थी। जब आप पर्वत के शीर्ष पर पहुंचते हैं तो शून्य पर पहुंच जाते हैं।
आप मध्यप्रदेश शासन के महत्वपूर्ण अभियान ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की ब्रांड एम्बेसेडर हैं। इसके तहत आपकिन क्या प्राथमिकताएं हैं?
‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान से मैं जुड़ी हुई हूं। बेटियों को बचाने और पढ़ाने के लिए प्रेरित करना मेरा कर्तव्य है। अपने आसपास के क्षेत्रों के घरों में जा कर मैं यही संदेश लोगों को देती हूं कि जन्म का अवसर एक जैसा होना चाहिए। बेटी और बेटे के जन्म में खुशियां बराबर की होनी चाहिए। इस अभियान के तहत मैंने यह पहल शुरू की है कि बेटियों के जन्म पर भी ढोल बजे और बराबर खुशियां मनाई जाएं। बांड एम्बेसेडर के लिए इस अभियान में दिव्यांका त्रिपाठी, शिल्पा शेट्टी के बाद मुझे चुना गया। यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान से मैं दिल से जुड़ी हूं।
आप पर्वतारोहण के साथ-साथ स्कूबा डायविंग में भी एक्सपर्ट हैं। स्कूबा डायविंग में आपकी क्या उपलब्धियां रही हैं?
स्कूबा डायविंग, माउन्टेनयरिंग से भी कठिन है। मेरा विश्व रिकॉर्ड है कि विश्व के चार महाद्वीपों के शिखर को छूने के बाद कोई भी शख्स 147 फीट नींचे नहीं गया है। 45 मीटर नीचे जाना, स्कूबा डायविंग में मेरा यह वल्र्ड रिकॉर्ड है।
जीवन में आपके लक्ष्य क्या हैं, औऱ किन ऊंचाईयों को आप छूना चाहती हैं?
जीवन में मेरा लक्ष्य है कि निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ती रहूं। छोटे-छोटे लक्ष्य को सफलतापूर्वक हासिल करती रहूं। हमारे गांव में यह कहावत है कि ‘बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की” इसलिए जब लक्ष्यों पूरी तरह से हासिल कर लूंगी तो सबसे साझा करूंगी।
पर्वतारोहण के लिए आपको विभिन्न पुरस्कार मिले है। कौन से पुरस्कार को आप अपने लिए सर्वोच्च मानती हैं?
मुझे पर्वतारोहण में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हुए हैं। मैं सभी पुरस्कारों को समान मानती हूं, उसे बड़ा या छोटा नहीं समझती। चाहे वह कालेज की ट्राफी हो या कोई राष्ट्रीय पुरस्कार। मेरे लिए मुझे मिला हर पुरस्कार अनमोल है।
इन दिनों आप किस अभियान पर काम कर रही हैं जो आपको संतुष्टि देता है?
इन दिनों में अपनी जड़ों के पास हूं। अपने गांव में हूं जहां और भी कई मेघा रहती हैं। उन्हें भी उनका पहाड़ चढऩे में मदद करनी है। जीवन में हर किसी को पहाड़़ अलग-अलग होता है जिसे सारी केठिनाईयों के बाद भी उसे फतह करना ही मकसद होना चाहिए। मैं उन बच्चियों के साथ हूं जिनमें मेरी जैसी आत्माएं बसती है। मुझे अपने आसपास और मेघाएं तलाशनी है। मैं उन सबकी मदद कर रही हूं।