डॉ. प्रज्ञा कौशिक
मीडिया एजुकेटर
शिक्षा अभी अधूरी है
भेद-भाव से नजर उपर उठ जाती क्यों नहीं?
हर इन्सान सिर्फ इन्सान
और नज़र इन्सानियत की
हमारी बन जाती क्यों नहीं?
कर्म नेकी और भाषा प्रेम की
अब पहचान, इन्सान की बन जाती क्यों नहीं?
आज़ादी विचारों में भी और
उदारता व्यवहारिक हो जाती क्यों नहीं?
जब भेद नहीं करता खुदा बन्दों में
तो ये जाति अन्तस से बन्दों के
निकल जाती क्यों नहीं?हमारे वेदों, पुराणों और शास्त्रों में गुरू का दर्जा भगवान के समकक्ष माना गया है वो गुरू जो अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाता है, वो गुरू जो सही और गलत की पहचान करना सिखाता है, वो गुरू जो समाज सुधारक और युगपर्वतक माना जाता है। स्त्रियों के अधिकारों, समाज में अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह, अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने वाले सावित्री बाई फुले, राजा राम मोहन राय, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम, रबीन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानन्द और अनेक शिक्षक आज के दौर में भी अपनी विलक्षण प्रतिभा और गुणों के कारण याद और अनुसरित किए जाते हैं।ऐसे महान शिक्षकों और विभूतियों के देश में जब कोई शिक्षक छोटे बच्चों को खाने पीने के पदार्थों को छूने न दें या उनके साथ मार पीट करें क्योंकि वो निम्न जाति के हैं तो यह विभत्स कृत्य और निम्न मानसिकता सभी को झकझोर देती है। चांद पर पुहचने वाला मनुष्य, अन्य ग्रह पर जीवन खोजने वाला अपने ही धरती पर अपने ही सह बन्धुओं के धर्म और जाति के नाम पर प्राण ले ले तो ऐसी विरोधाभास वाली मानसिकता अमानवीय है, शोचनीय है। अगर हमें जातिगत भेदभाव जैसी कुरीति दर्द नहीं देती, बच्चे भी इन भेदभाव से उपर नहीं दिखते, शिक्षा में भी गुलामी का दंश नहीं दिखता, तो कमी हम सभी के जमीर की चेतना की है।
ऐसे ही एक अन्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने नौवीं कक्षा के छात्र को चार-पांच बार विद्यालय में सब बच्चों के सामने मारा जिससे आहत होने पर बच्चे ने आत्महत्या कर ली और ऐसे कितनी ही घटनायें जहां जाति धर्म के नाम पर या वैचारिक मत भेदों से या अपने प्रभुत्व को दर्शाने के लिए न केवल आम इन्सान बल्कि शिक्षक या समाज के जिम्मेदार माने वाले लोगों ने भी अप्रिय, असमानता और अमानवीयता के भेदभाव के काम किए या उनको होने दिया। कैसे लोग हैं ये, कैसे शिक्षक हैं ये और कैसी शिक्षा का निर्वहन कर रहे हैं हम! कैसे समाज और देश की संकल्पना ये सब करेंगे! विश्व गुरू बनने वाले भारत का कौन सा हिस्सा कहलायेगें ये लोग! शिक्षा अभी इन शिक्षकों की भी अधूरी ही है जिन्हे स्वयं आत्मसात करना होगा शिक्षा के मूल उद्देश्यों को,आंकलन करना होगा अपने ही मूल्यों का। शिक्षण प्रणाली में और शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में भी मानवीय गुणों को शैक्षणिक योग्यता के समकक्ष अनिवार्य स्थान देना होगा, नहीं तो साक्षर तो हम होंगे पर शिक्षित नहीं और इन कुरीतियों गुलाम ही रहेंगे ।