राजीव सक्सेना
पटकथा लेखक एवं निर्देशक

‘फि़ल्मी बतियां ‘ , ‘हमारे आसपास ‘ जैसे आधा कई टीवी शोज में निर्देशन और लेखन, दूरदर्शन वृत्तचित्र ‘मालवा का काश्मीर ‘ , ‘देवास:कल, कला और अध्यात्म का संगम ‘ और ‘मालवा की विरासत ‘ जैसी 12 लघु फिल्मों का लेखन निर्देशन इन्होंने किया है।
रीजनल, मुख्य धारा के सिनेमा और टीवी धारावाहिकों के लिए लेखन और निर्देशन के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय हैं। एपिक टीवी पर हेरिटेज इंडिया, देसी फोक, हमारी संस्कृति, आवाज़ ओ अंदाज़, सिटी ऑफ इंडिया, स्वर्णिम गुजरात, सरोकार राजस्थान जैसे जनप्रिय टीवी शोज़ के लेखक एवं निर्देशक हैं। इसी चैनल में ‘सरोकार ‘ शो का वतर्मान में प्रसारण हो रहा है।
वेबसीरीज की तमाम तरह की आलोचनाओं के बीच, अब यहां – वहां हर जगह, हर वर्ग के लोगों में इनकी तारीफ या जुबानी समीक्षायें भी सुनाई देने लगीं हैं.कहीं किसी मामले में कोई मिसाल देते हुए, आम चर्चाओं में फि़ल्म या टेलीविजन शो नहीं वेबसीरीज का नाम स्मरण में आता है। इधर, कुछ समय से, देर तक याद रखी जानेवाली, वेब श्रृंखलायें, उम्दा कंटेंट के साथ देखी और पसंद की जा रही हैं।
वैवाहिक अलगाव : डीकपल्ड
महानगर की भागमभाग वाली, अन्यमनस्क किस्म की आधुनिक जीवनशैली में, दो विपरीत विचारधाराओं में जी रहे पति – पत्नी में अक्सर तकरार स्वाभाविक है। खासकर दोनों कामकाजी हों तो परस्पर अलगाव की परिस्थिति बनते देर नहीं लगती।
नेटफ्लिक्स पर विगत वर्ष शुरू हुई वेब श्रृंखला ‘डीकपल्ड ‘ के नये भाग में नायिका अपने स्टार्ट अप प्रोजेक्ट में खुद को लगभग झोंक देती है, जबकि उसका पति एक नामचीन लेखक बनने की दौड़ में स्वयं को मानसिक तौर पर उलझा हुआ पाता है. किसी एक मोड़ पर, दोनों एक ही घर में रहते हुए तलाक का अजीब ओ’ गरीब फैसला ले लेते हैं। अलग होकर भी एक छत के नीचे रहने की वजह उनकी दस बारह साल की बेटी है, जो उनके फैसले से अनजान है। संयुक्त परिवार की अवधारणा से विपरीत बड़े शहरों में जि़न्दगी की ज़द्दोजहद में खपे युगल के सामने, आज की तमाम नई चुनौतियां सीना ताने खड़ी नजऱ आती हैं। वेब श्रृंखला ‘डीकपल्ड ‘ के नये भाग में, इसी कड़वे सच को विषयवस्तु बनाया गया है। पत्नी के गरिमामय ओहदे के सामने लेखक पति के अहम को हर पल ठेस पहुंचना,कहानी को कई सारे मोड़ देता है। उसकी कुंठाओं को पटकथा लेखक ने बेहतर तरीके से रेखांकित किया है। विक्रमादित्य मोटवानी और अन्य सहनिर्माताओं की प्रस्तुति ‘डीकपल्ड ‘ में, हार्दिक मेहता का निर्देशन भी इसके मुख्य किरदार की तरह उलझा हुआ सा लगा। अभिनेता आर. माधवन और सुरवीन चावला ने अपनी भूमिकाओं को जीने में खास मेहनत की है। लेखक चेतन भगत को अपने मूल स्वरुप के साथ अभिनय करते देखना भी दिलचस्प अनुभव है।
ट्रिपलिंग : बच्चों ने घर बचाया
ज़ी फाइव पर नई वेब श्रृंखला ‘ट्रिपलिंग ‘ तमाम जि़न्दगी बच्चों के पालन – पोषण में गुज़ार चुके पति – पत्नी के, अपनी शेष उम्र, शौक पूरे करके व्यतीत करने की गजऱ् से अलग रहने के फैसले पर आधारित है। किसी भारतीय परिवार के लिए हालांकि इस तरह का निर्णय असहज सा लगता है, लेकिन लेखक और निर्देशक की सूझ – बूझ ने श्रँखला को दिलचस्प आकार दिया है। खूबसूरत पहाड़ी शहर में, भव्य बंगले में रहने वाले परिवार के दो बेटे नौकरी के सिलसिले में महानगर में जाकर बस जाते हैं, जबकि बेटी एक रॉयल फैमिली की बहू बन, ससुराल में सुखी जीवन व्यतीत कर रही है। शेष रह गए अधेड़ से बुजुर्ग होते युगल को ये निपट अकेलापन, अपनी अपनी रुचियों की तरफ आकर्षित करता। है।
पारिवारिक बंधन से मुक्त होकर, अपना महंगा बंगला किसी होटल समूह को बेच कर दोनों अलग – अलग राह का मुश्किल निर्णय ख़ुशी – खुशी लेते हैं। बेटी और बेटों को मां – बाप का ये कदम स्वाभाविक रूप से अज़ब और नाग़वार लगता है। मां – बाप के बुलाने पर दोनों भाई और उनकी बहन उनके पास पहुंच कर सवालों की झड़ी लगा देते हैं। पिता का उनसे उल्टा सवाल वाजि़ब लगता है कि जि़न्दगी जीने और शादी के तुम्हारे अपने फैसले पर जब हमने कोई आपत्ति नहीं जताई तो हमारे मामले में भी तुम्हें बीच में बोलने का हक़ नहीं।
बच्चों की मायूसी के बीच, राज परिवार से जुड़े दामाद द्वारा होटल समूह से, बंगला की खरीद के हो चुके सौदे को रद्द कर उसे बचा लेना एक सुखद अहसास साबित हुआ। बच्चों से फिर एक बार अपने इसी मकान में मिलने के वादे के साथ युगल देश के अलग – अलग हिस्सों में भ्रमण के लिए निकल पड़ता है। पुराने कहानीकार और पटकथा लेखकों की सोच से एकदम अलग सोच रखने वाली स्क्रीनराइटर्स की नई पीढ़ी, कथानक को समयगति के साथ जोड़कर नये प्रयोग के लिए संकल्पबद्ध है, जो ओटीटी चैनल्स के कर्ता धर्ताओं को व्यावसायिक दृष्टि से लाभकारी भी लग रहे हैं.यानी आज के दर्शक नई थीम को शौक से देख भी रहे हैं।
‘ट्रिपलिंग ‘ में सुमित व्यास की पटकथा पर, नीरज उधवानी के निर्देशन में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अभिनेता कुमुद मिश्रा के साथ शेरनाज़ पटेल , सुमित व्यास, निधि बिष्ट, कुणाल रॉय कपूर, समीर सक्सेना, गजराज राव और श्वेता त्रिपाठी ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। पहाड़ी स्थानों पर फि़ल्मांकन, खूबसूरत दृश्यों के ज़रिये सुकून देता है।
‘तू ज़ख्म है ‘ : दुश्मन की बेटी से इश्क़
नोएल स्मिथ और अनिरुद्ध राजेंंद्रकर के निर्देशन में एमएक्स प्लेयर पर प्रदर्शित नई वेब श्रृंखला ‘तू ज़ख्म है ‘ , दिल्ली- एनसीआर के एक बेहद रईस लेकिन कुख्यात हवाला व्यवसायी त्रेहन परिवार और उनके अवैध कारोबार के इर्द – गिर्द रची – बुनी गई है। दिल्ली से गुरुग्राम के बीच सैकड़ों एकड़ की ज़मीन पर बंगला या फार्म हाउस नहीं, भव्य एम्पायर में रहने वाले व्यवसायी त्रेहन की संदिग्ध मौत के बाद उसका महत्वाकांक्षी लेकिन तमाम दुविधाओं में कारोबार सम्हाल रहा छोटा बेटा विराज त्रेहन उस वक्त बड़ा झटका खा जाता है, जबकि उनके धंधे की महत्वपूर्ण जानकारी वाली डायरी या ब्लेक बुक उनके ही एक अकाउंटेंट के माध्यम से अचानक गायब कर ली जाती है।
सरकारी जाँच एजेंसी के हाथ लगने की आशंका से ब्लेक बुक की खोज में हैरान – परेशान विराज का अकॉउंटेंट विनोद की खूबसूरत बेटी से सामना उसकी जि़न्दगी में नई हलचल पैदा कर देता है। एक अज़ब से आकर्षण में बँधा विराज अपने भव्य एम्पायर में विनोद की बेटी काव्या को बंधक बनाकर तब तक रखना चाहता है जब तक कि ब्लेक बुक उसे वापस नहीं मिल जाती।
अपने व्यवसाय को बचाने, काव्या को लेकर मोह और परिवार की कितनी ही उलझनों में उलझे विराज त्रेहन की कहानी दर्शकों को कहीं उलझाती और कहीं दिलचस्पी बढाती सी महसूस होती है। उभरते अभिनेता गश्मीर महाजनी और अभिनेत्री डोनल बिष्ट के अलावा अधिकतर नये चेहरों ने श्रृंखला ‘तू ज़ख्म है ‘ को रोचक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।