अभिषेक रे
अभिषेक रे मशहूर फिल्म संगीतकार, गायक और लाईव परफ़ॉर्मर हैं। प्रकृति प्रेमी और वन्य जीव संरक्षक के रूप में उनकी एक अलग पहचान है। वे सिताबनी वाईल्ड लाईफ रिज़र्व के संस्थापक हैं। विगत दिनों वन्य जीव संरक्षण और सिताबनी वाईल्ड लाईफ रिज़र्व को प्रकृति अनुरूप विकसित करने में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए अमेजि़ंग इंडियन प्रतिष्ठित अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया गया है। हाल ही में रिलीज़ हुए उनके म्यूजि़क विडिया “लैट इट रेन” के एक मिलियन से भी अधिक व्यू हो चुके हैं। प्रकृति प्रेमी और संगीतकार अभिषेक रे से गुरबीर सिंह चावला की विशेष बातचीत।
कुदरत के प्रति प्रेम मेरे अंतर्मन की आवाज़ है – अभिषेक रे
मैं प्रकृति की दी हुई सांसे लेता हूं और इन सांसो की जीवन्तता से मेरे दिल की गहराईयों से आने वाली संगीत की धुनों को सृजित करता हूं
संगीत के अपने प्रारंभिक सफर के बारे में कुछ बताइए। संगीत आपको विरासत में मिला या आपकी अपनी रूचि थी?
मेरे परिवार में सभी संगीत प्रेमी रहे हैं। मेरी माता जी ने विधिवत संगीत की शिक्षा ली थी और पिता जी बहुत अच्छा सितार बजाते हैं। अपने परिवार में संगीत के माहौल का गहरा असर मुझमें रहा है। मेरे माता-पिता को संगीत से लगाव रहा, पर उन्होंने कभी इसे प्रोफेशन के रूप में नहीं लिया। अपने परिवार से मैं एक अकेला शख्स हूं जिसने उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी नौकरी नहीं की और हमेशा संगीत के प्रति समर्पित रहा।
आपने अपने संगीत के कैरियर की शुरूआत गुलज़ार साहब के सानिध्य से की। गुलज़ार साहब एक अज़ीम शख्सियत हैं। आपके कैरियर में उनका कैसा प्रभाव पड़ा जो आज भी कायम है?
गुलज़ार साहब से मेरी मुलाकात कच्ची उम्र में हुई थी। उनसे पहली मुलाकात की मेरे जीवन में बहुत गहरी छाप रही है। यह उन दिनों की बात है जब मैं दिल्ली मेंं पढ़ाई कर रहा था। दिल्ली से प्रसारित होने वाले न्यूज चैनलों और टीवी सीरियलों के लिए म्युजि़क कम्पोज किया करता था। मैंने भौतिकी में स्नातक और कम्प्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन की शिक्षा हासिल की है। उन्हीं दिनों गुलज़ार साहब से मेरी मुलाकात एयरपोर्ट में हुई थी। उस पहली मुलाकात ने मेरी जिंदगी ही बदल दी। टीवी इंडस्ट्री से फिल्म इंडस्ट्री में मेरे आने का आधार गलज़ार साहब का प्रोत्साहन और मार्गदर्शन रहा है। मेरी दिली ख्वाहिश थी कि गुलज़ार साहब की कविताओं पर एक ऐसा एलबम बनाऊं जिसमें उनकी कविताओं और मेरे संगीत का समिश्रण हो। मेरी यह ख्वाहिश गुलज़ार साहब के सहयोग से पूरी हुई। ‘उदास पानी ‘ मेरा पहला सफल एलबम था जो म्युजि़कल सागा ऑफ पोएटिक मूड के नाम से काफी मशहूर हुआ और गुलज़ार साहब के साथ काम करने की मेरी दिली इच्छा भी पूरी हुई। ‘उदास पानी ‘ के बाद उनके साथ काम का एक लंबा सिलसिला शुरू हुआ। द टाइम्स म्युजिक ने हमारा दूसरा एलबम ज़ारी किया जिसका नाम गुलज़ार साहब ने , ‘रात चांद और मैं ‘ रखा। वीरानों में, पहाड़ों में, जंगलों में भटकना मुझे पसंद है। मेरी सारी क्रिएटिविटी यहीं से आती है। जब मैंने रात के कम्पोजिशन तैयार किए थे जो रात के मूड को कैप्चर करते हैं,उसे मैंने रात के वीरानों में रह कर महसूस किया और इन कम्पोजिएशन्स को मैंने ‘रात चांद और मैं ‘ में पेश किया। इसमें गुलज़ार साहब की रचनाएं और नैरेशन्स थे। मैंने इसे कम्पोज किया और गाया था। ‘रात चांद और मैं ‘ की सफलता के बाद गुलज़ार साहब के साथ मैंने और भी कई अलग-अलग मूड्स के एलबम बनाये। सिंगल्स भी मैंने बनाए जिसमें कई गायकों ने अपने स्वर दिए थे जिसमें श्रेया घोषाल, कविता कृष्णामूर्ति, अलका याज्ञनिक, उदित नारायण, अभिजीत, हरिहरण जी शामिल हैं। गुलज़ार साहब ने गीतों और मेरे म्युजि़क को श्रोताओं का अपार स्नेह मिला। गुलज़ार साहब के साथ मैंने जितना भी काम किया है वह मेरे लिए अनमोल है। मैं यह मानता हूं असली संगीत वह है जिसे प्रचार-प्रसार की जरूरत न पड़े। ऐसे गीत हमेशा यादगार रहते हैं, जो अपनी संगीत की उड़ान खुद भरते हैं और लोगों के दिलों में छा जाते हैं।
गुलज़ार साहब के साथ काम करने का एक लम्बा अनुभव आपके पास है। उनसे सबसे बडी कला आपने कौन-सी सीखी?
गुलज़ार साहब का व्यक्तित्व बहुत विशाल है। मेरा हाथ उन्होंने तब थामा जब मेरी कोई पहचान नहीं थी। उन्होंने ही मेरे अंदर की कला को परखा और उसे तराशा। बॉलीवुड में काम करते हुए मैंने ऐसा उदार व्यक्तित्व नहीं देखा। वे मेरे लिए फ्रेंड, फिलोसफर और गाईड हैं। मैंने उनसे धैर्य रखना सीखा। किसी भी कलाकार का धैर्य ही उसकी सफलता-असफलता का पैमाना होता है। तत्काल मिलने वाली सफलता और असफलता कलाकार के कैरियर को प्रभावित नहीं करती।
बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने के लिए आपका प्रारंभिक संघर्ष कैसा रहा। संघर्ष के दिनों की कठिनाईयां आपके लिए कितनी चुनौतीपूर्ण थीं। आप अपने स्ट्रगल के दिनों को किस तरह याद करते हैं?
मेरे लिए संगीत का दौर कभी संघर्षों भरा नहीं रहा। अपने संगीत के सफर के उतार-चढ़ाव को मैं किसी तरह का स्ट्रगल नहीं मानता। म्युजि़क का कोई भी पल मेरे लिए स्ट्रगल नहीं रहा। जब मैं स्कूल में था तभी से मैं म्युजि़क कम्पोज़ कर रहा हूं। उसी से मैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना। दिल्ली में स्नातक की पढ़ाई करते-करते हैं मैं फिल्म म्युजि़क में अपने आपको स्थापित कर चुका था। स्नातक की पढ़ाई के दौरान दिल्ली से मुंबई जाकर फिल्मों के लिए म्युजि़क रिकार्ड करता था। मेरी पढ़ाई और संगीत का सफर साथ-साथ चला। मैं यह मानता हूं कि कम्पोजऱ कुदरती होते हैं। कम्पोजऱ का काम होता है यूनीवर्स से साउंड को पकड़कर ओरिजनल मेलोडिस क्रिएट करना। मैं उन कम्पोजर्स की बात नहीं कर रहा जो अलग-अलग जगहों से धुनें चुराकर रिकॉर्डिंग की नई तकनीकों का इस्तेमाल कर अपना नाम करते हैं। यहां पर मैं कुदरती कम्पोज़र्स की बात कर रहा हूं। जिनके अंतर्मन में अनायास ही धुनें आती रहती हैं। मेरे मन में धुनें आती रहती हैं। मेरे मन में चलने वाली यह धुनें मुझे कहती रहती हैं कि हमें बाहर निकालो और गीतों में पिरो दो। मैं प्रकृति की दी हुई सांसे लेता हूं और इन सांसो की जीवन्तता से मेरे दिल की गहराईयों से आने वाली संगीत की धुनों को सृजित करता हूं। संगीत का मेरा सफर बेहद रोचक रहा है इसके किसी भी पल को मैं स्ट्रगल से साथ नहीं जोड़ूंगा क्योंकि संगीत के इस सफर में हमेशा कुछ नया करने का प्रयास मैंने किया है। असफलता के दौर को ही हम स्ट्रगल कहते हैं। मेरे लिए सफलता और असफलता कोई मायने नहीं रखती, अच्छा काम धैर्य के साथ करते रहना मायने रखता है।
एक सफल संगीतकार में किन विशेषताओं का होना ज़रूरी हैं?
म्युजि़क कम्पोज़र्स कुदरती होते हैं। किसी को म्युजि़क कम्पोजऱ बनाया नहीं जा सकता। जन्म से ही संगीत की गहराईयों से वाकिफ होने की कला उनमें होती है।। म्युजि़क कम्पोजर द्वारा क्रिएट की जाने वाली धुनें, उसके दिल से आती हैं। कम्पोजऱ एक माध्यम है जो प्रकृति से संगीत, ध्वनि को पकड़ कर धुनों को साकार रूप देता है। धुनें सृजित करने का मेरा सफर शुरू से लेकर अब तक काफी रोचक रहा है। संगीत और प्रकृति ने मुझे कब संगीतकार बना दिया पता ही नहीं चला।
मैं संगीत में समाया हुआ हूं और संगीत ने ही मुझे सुकून दिया है।
आपके कैरियर की प्रारंभिक सफलता कौन सी थी जिससे आपको संगीतकार के रूप में पहचान मिली?
अपनी जिंदगी की प्रारंभिक सफलता का श्रेय मैं दो शख्सियतों को देना चाहूंगा। पहले गुलज़ार साहब दूसरे मशहूर फिल्म मेकर तिगमांशु धुलिया। तिगमांशु जी की पहली फिल्म ‘हासिल ‘ में मेरा संगीत था। इसी फिल्म से अभिनेता इरफान खान का भी काफी नाम हुआ था। मेरी दोनों उपलब्धियां ‘उदास पानी ‘ और ‘हासिल ‘ एक ही साथ आई थी जिनको मैं अपनी प्रारंभिक सफलता मानता हूं। इन दोनों से संगीतकार के रूप में पहचान मिली।
आप एक बेहतरीन गायक भी हैं। संगीतकार का एक उम्दा गायक होना उसके कैरियर के लिए कितना फायदेमंद होता है?
मैं शुरू से ही गायक और संगीतकार दोनों रहा हूं। मुझे लगता है कि गायक और संगीतकार एक साथ होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि उसे इज़हार करने का एक माध्यम मिल जाता है। एक कम्पोजऱ अपनी धुनों को प्रस्तुत करने के लिए गा के सुनाता है या फिर इंस्ट्रूमेंट्स में बजा कर सुनाता है। एक संगीतकार के पास अपनी आवाज़़ से धुनों को पेश करने का गुण भी हो तो कम्पोजऱ का काम आसान हो जाता है। जब मुझे यह एहसास होता है कि किसी गाने में मेरी आवाज़़ सही लगेगी उसे मैं स्वयं गाता हूं। धुनों और गीत रचना के हिसाब से जिन गायकों की आवाज़ मेल खाती है उन्हें ही मौका देता हूं।
आपके बैनर ए. आर. प्रोडक्शन के तहत गुलज़ार साहब के लिखे गीतों को और आप के संगीत निर्देशन में कई मशहूर गायकों ने गाया है। इस म्यूजि़क एल्बम का सर्वश्रेष्ठ गीत और गायक आप किसे मानते हैं?
एक संगीतकार के रूप में काफी फिल्मों के लिए म्युजि़क कम्पोज़ करने के बाद मैंने अपना वेंचर ए.आर. प्रोडक्शन शुरू किया। अपना प्रोडक्शन शुरू करने पीछे मेरा यह मकसद था कि हर महीने एक बेहतरीन गाना प्रस्तुत कर सकूं। मेरा यह वेंचर आज एक ब्रांड बन चुका है जिसके लिए बहुत सारे लोगों ने काम किया है। कई सिंगर्स ने मेरे प्रोडक्शन के लिए गाने गाए हैं जिनमें श्रेया घोषाल, हरिहरण, सोनू निगम, अलका याज्ञनिक, कविता कृष्णामूर्ति और वर्तमान में जो पापुलर सिंगर्स हैं उनमें अन्वेषा, भूमि त्रिवेदी, प्रतिभा सिंह बघेल का नाम शामिल है। गुलज़ार साहब की बेहतरीन रचनाओं को इन सिंगर्स ने गीत गाए हैं। आज के दौर में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए गाने पूरी दुनिया में कुछ ही समय में पहुंच जाते हैं। अपने बैनर के जरिए उभरते हुए नए प्रतिभाशाली गायकों को भी मौका देता हूं जिनकी अपनी एक मौलिक आवाज़़ है और संगीत के क्षेत्र में अपना टैलेंट दिखाना चाहते हैं। मैं यह मानता हूं कि सभी गायक श्रेष्ठ होते हैं उनमे आपस में तुलना करना न्यायसंगत नहीं होगा।
बॉलीवुड में आजकल पहले धुनें (म्यूजि़क ट्रैक) तैयार कर ली जाती हैं फिर गीत लिखवाए जाते हैं। बिना गीतों की पंक्तियों और उनके भावों के फिल्म के संगीत को तैयार करना कितना मुश्किल होता है। एक म्युजि़क कंपोजर होने के नाते आपका अपना नज़रिया क्या है। पहले गीत लिखे जाने चाहिए या संगीत?
पहले संगीत या पहले गीत, यह कोई नई बात नहीं है। काफी पहले से यह प्रयोग होता रहा है। पहले धुनें तैयार हो जाती है फिर सिचुएशन के हिसाब से गीत लिखे जाते हैं। दोनों ही तरीकों से एक संगीतकार अपना श्रेष्ठ दे सकता है। ऐसे बहुत सारे गीत सुपरहिट हुए हैं जिनकी धुनें पहले तैयार हुई बाद में गीत लिखे गए, मिसाल के तौर पर एक गीत जैसे ‘ये शाम मस्तानी ‘ जो पहले बांग्ला में हिट हो चुका था फिर हिन्दी में भी बना और सुपरहिट हुआ। इसकी धुन पहले बनाई गई थी फिर गीत लिखा गया था। ऐसा ही एक और सुपरहिट गीत है ‘तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं ‘ इसकी धुन भी पहले तैयार हुई थी। फिल्म की सिचुएशन के हिसाब से भी यह तय किया जाता है कि पहले किस पर काम करना है। पहले गीत या पहले संगीत। यह गीतकार और संगीतकार के आपसी सामंजस्य पर निर्भर करता है कि उन्हें क्या सूट करता है।
आजकल टीवी रिएलिटी शोज़ में बहुत सारे नवोदित गायक अपनी गायकी का हुनर दिखा रहे हैं। इन टैलेंट को पॉपुलैरिटी तो जल्दी मिल जाती है पर फिल्म इंडस्ट्री में काम नहीं मिलता और वे निराश हो जाते हैं। पार्श्वगायन के क्षेत्र में सफल होने के लिए आप उन्हें क्या मार्गदर्शन देना चाहेंगे?
रिएलिटी शोज़ में नाम कमाना और सिनेमा के लिए पार्श्व गायन करना दोनों अलग-अलग मसले हैं। रिएलिटी शोज़ में नए गायक पहले हिट हो चुके गीतों को अपनी गायकी से बेहतर से बेहतर प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं। जबकि हिन्दी सिनेमा में पाश्र्व गायन के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू है कि आपकी आवाज़़ की एक अलग पहचान होनी चाहिए, आवाज़़ में मौलिकता होनी चाहिए और गीत के भावों को समझते हुए उसे गाने की कला होनी चाहिए। जितने भी सफल गायक हुए हैं उन्होंने अपनी आवाज़़ की मौलिकता और गीत के शब्दों के भावों के साथ गाया है। लता जी, किशोर कुमार, मोहम्मद रफी साहब, मुकेश जी, मन्ना-डे जैसे गायकों की आवाज़ की मौलिकता ने उन्हें संगीत में सफलता के शीर्ष पर पहुंचाया।
एक संगीतकार के रूप में आपकी अपनी सर्वाधिक प्रिय फिल्म कौन सी है?
मैं इस मामले में खुशनसीब रहा हूं कि एक म्युजिक कम्पोजऱ के रूप में अलग-अलग शेड्स की फिल्मों के लिए काम किया। एक ही तरह की फिल्मों के लिए मैं कभी टाइप्ड नहीं रहा। मेरी फिल्में साहिब, बीवी और गैंगस्टर, यह साली जि़न्दगी, आई एम कलाम, वैलकम बैक यह फिल्में अलग-अलग विषय वस्तु पर केन्द्रित थीं और सबका प्रेजेन्टेशन एक दूसरे से बिल्कुल अलग था। विभिन्न कथावस्तु वाली फिल्मों के लिए मैंने सफलतापूर्वक संगीत कम्पोज़ किया। कई सफल और अनुभवी फिल्म निर्देशकों के साथ काम करने का मुझे मौका मिला। मैं मानता हूं कि एक सफल संगीतकार के लिए वरसाटाईल होना बहुत ज़रूरी है। बॉलीवुड फिल्मों का म्युजि़क कम्पोजऱ बनना सबसे डिमांडिंग प्रोफेशन है। किसी एक सर्वश्रेष्ठ फिल्म को चुनना मेरे लिए बहुत मुश्किल है, फिर भी एक फिल्म का नाम जरूर लेना चाहूंगा वह है ‘पान सिंह तोमर ‘ । इसे फिल्म के संगीत संयोजन के लिए मुझे एक दायरे में रहकर काम करना था क्योंकि 1950 के दौर की यह एक बायोपिक फिल्म थी। मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश के बार्डर की बुंदेलखण्ड की यह कहानी थी। उस क्षेत्र के लोक संगीत और उस दौर में वहां के लोक संगीत में बजाए जाने वाले म्युजिक इन्स्ट्रूमेंट्स से मैं बंधा हुआ था। इस फिल्म के संगीत के लिए मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया जो सफ़ल रहा। इस फिल्म को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार हासिल हुए। इस फिल्म के वीर रस के गीतों को दर्शकों ने बेहद पसंद किया।
संगीत प्रेमी होने के साथ-साथ आप पर्यावरण संरक्षक और प्रकृति प्रेमी भी हैं। आपने अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा सीताबनी के अपने वाइल्ड लाईफ रिजर्व में लगाकर उसे विकसित किया है। प्रकृति प्रेम की प्रेरणा आपको किसी से मिली या यह आपके अंतर्मन की आवाज़़ थी?
बाघ गणना के लिए आज से कई साल पहले मेरी पोस्टिंग जिम कार्बेट नेशनल पार्क में हुई थी। उसी दौरान मैं एक बंजर पहाड़ी पर आया जिसमें कुछ क्षेत्र में खेती हो रही थी और चारों तरफ घनघोर जंगल था। बाघ बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण जंगली जानवर और इंसानों के बीच तकरार बनी हुई थी। इस जमीन के एक ओर पहाड़ी नदी होने के कारण यह कुदरती टाईगर न्लैपोर्ड कॉरीडोर था। यह ज़मीन वापस जंगल में विलीन होने के लिए बेताब थी। मैंने अपने प्रोफेशन से कमाई हुई सारी पूंजी अपने शुभचिंतकों के खिलाफ जाकर इस जमीन के खरीदनें में लगा दी। मैंने अपनी पूंजी प्रवृत्ति को समर्पित करने का फैसला लिया। किसी व्यावसायिक भूमि में ज्यादा लाभ कमाने के मकसद से निवेश नहीं किया। जमीन खरीदने के अगले बारह सालों में मैंने यहां साढ़े चार हजार पेड़ लगाकर और जलाशय बना कर यह जमीन वापस प्रकृति को लौटा दी। वर्ष 2013 में एक बाघिन ने उसी प्राकृतिक जमीन पर शावकों को जन्म दिया और उनके शावक वहीं बड़े हुए। उस बाघिन ने मुझ पर भरोसा कर मेरी जमीन को विश्व का सर्वप्रथम प्राईवेट वाईल्ड लाईफ रिजर्व बना दिया, जिसमें अब टाईगर एवं लैपड्र्स की मौजूदगी है। इस घटना के बाद मेरा विकसित किया हुआ वाईल्ड लाईफ रिज़र्व विश्व प्रसिद्ध हो गया। जहां दूर-दूर से सैलानी आते हैं। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि आप एक प्रतिशत कुदरत के लिए काम करेंगे तो बाकी निनयानबे प्रतिशत कुदरत स्वयं कर लेगी।
वर्तमान की आधुनिक जीवनशैली में हम निरंतर प्रकृति से दूर होकर अनियमित जीवनशैली के आदी हो गए हैं। प्रकृति और अपने जीवन के साथ ऐसी सोच मानवता को किस दिशा में ले जा रही है। प्रकृति प्रेमी और पर्यावरण संरक्षक होने के नाते देश के लोगों को आपका क्या मैसेज है?
कुदरत के प्रति प्रेम के लिए मुझे किसी ने प्रेरित नहीं किया। हम प्रकृति को बेहिसाब नुकसान पहुंचा चुके हैं। इसके लिए गंभीर चिंतन जरूरी है। अब हम उस मोड़ पर खड़े हैं जहां से हमें वापस जाना होगा और प्रकृति को हरा-भरा करने के लिए मानवता के प्रति अपने दायित्व को निभाना पड़ेगा। पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन आज की सबसे बड़ी जरूरत है। जब प्रकृति ही नहीं रहेगी तो जीवन भी नहीं रहेगा। जिस प्रकृति में हम रहते हैं, जिस जल का हम सेवन करते हैं, जो हवा हमारे लिए प्राण वायु है क्या उसी को निरंतर नुकसान पहुंचा रहें हैं।
आने वाली पीढिय़ों के लिए हम यह कैसी धरोहर तैयार कर रहे हैं जहां वे ठीक से सांसें भी न ले पाएं। नदी का स्वच्छ जल इंसानों का हाथ लगते ही दूषित हो जाता है। जब तक नदी प्रकृतिक की गोद में रहती है यह एकदम स्वच्छ रहती है। जैसे ही यह नदी गांवों तक आती है इसका पानी दूषित होने लगती है। शहरों की तो बात ही छोड़ दीजिए। नदी के जल को प्रदूषित इंसान ही करते हैं जानवर नहीं। आज जंगलों का अधिकांश भाग काटा जा चुका है। हमारी प्रकृति इंसानों द्वारा फैलाए जा रहे भयंकर प्रदूषण से पीडि़त है। जो हम प्रकृति को देंगे वही हमें वापस मिलेगा। हमारे जंगल कुदरती दरिया है। कुदरती पानी के संग्रह के लिए, पेड़ों की जड़ों में पानी जाकर एकत्र होता है और उन्हीं जड़ों को हम काटने में लगे हुए हैं। भारत की अधिकतर नदियां टाइगर फारेस्ट से ही निकलती हैं। यह एक बहुत बड़ी गंभीर चिंता का विषय है कि भारत के पास वर्तमान वैश्विक स्तर पर केवल चार प्रतिशत ही जल बचा है। इसकी तुलना में भारत की जनसंख्या बेहिसाब है।
इंसान प्रकृति के प्रति खिलवाड़ कर रहा है उसमें भविष्य में सिर्फ विनाश नज़र आ रहा है। इसलिए बिना देर किए सचेत होने की जरूरत है। वाईल्ड लाईफ हमारे आने वाले समय का एक प्राकृतिक संकेतक है। अभी भी वाईल्ड लाईफ का जो हिस्सा बचा है उसे संरक्षित करने की जरूरत है। प्रकृति का ऋण हम कभी भी उतार नहीं सकते। हमें जिन्हें जंगली जानवर कहते हैं वे दरअसल जंगली नहीं है वे तो हमारे पर्यावरण और वनों के संरक्षक हैं। यह सारे जानवर वल्र्ड सिटीजन्स हैं। वे स्वच्छ इको सिस्मट के धरोहर हैं। अगर हम वाईल्ड लाईफ को बचाएंगे तो हम अपने भविष्य को भी बचाएंगे।
अपनी अब तक की सफलताओं का श्रेय आप किसे देना चाहेंगे?
मैं अपनी सारी सपलताओं का श्रेय कुदरत को ही देना चाहूंगा। मैं नेचर के लिये एक समर्पित सिपाही हूं। मैं आजीवन प्रकृतिक और जंगली जानवरों को बचाने का प्रयास करता रहूंगा। संगीत के अपने प्रोफेशन के कार्यों के बाद सारा समय प्रकृति की सेवा ही मेरे लिए सर्वोपरि है।