योग गुरू पूर्णाद्वैथि, ऋषि ट्राइब से हुई अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के बारे में पत्रकार अनुभा जैन की खास बातचीत
दुनियाभर की समस्याओं का समाधान सार्वभौमिक होता है उसी तरह योग समस्याओं का सार्वभौमिक समाधान देता है। योग का अनिवार्य रूप से मतलब है एक मिलन यानी दो का एक हो जाना। योग शरीर से शुरू होता है और आत्मा पर समाप्त होता है, जिसे दुनिया में आत्मा के रूप में जाना जाता है, जो “जीवन का सार“ है।
योग शरीर को बेहतरीन बनाने में मदद करता है। व्यक्ति के शरीर को सांस लेने की जरूरत है किंतु उसे सही सांस लेने की जरूरत है। पशु और पक्षियों को योग की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे सहज योग जीवन में हैं, वे प्रकृति के अनुरूप रहते हैं जहाँ मनुष्य अभी भी एक प्राणी नहीं है, वह “होने“ के स्तर पर है।
एक बार जब शरीर आराम की स्थिति में होता है, तो मन उसका अनुसरण करता है। आप अपने भीतर शांति पाते हैं और इसे परिवार के साथ साझा करते हैं। शांति स्पष्टता लाती है। एक शांतिपूर्ण घर सद्भाव पैदा करता है, और यहीं से एक शांतिपूर्ण समुदाय और अंतत एक शांतिपूर्ण राष्ट्र बनता है। दुनिया, इस तरह से सामंजस्य स्थापित कर अपने लोगों के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ जीवन जीने के लिए शांति, पोषण, कौशल ला सकती है, और यह अब पहले से कहीं अधिक संभव है क्योंकि दुनिया एक वैश्विक गांव है।
शांति और सद्भाव की भावना हमारी योग भूमि में उत्पन्न हुई है इसलिए हम निश्चित रूप से योग के बारे में दुनिया का मार्गदर्शन करने और हठधर्मिता, अज्ञानी, भौतिकवादी और विभाजनकारी मानसिकता में खोई हुई चेतना को फिर से जगाने की स्थिति में हैं।
हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करना चाहिए। हमारे बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य सर्वोपरि है। जीवन की सभी सुख-सुविधाओं का अनुभव करने वाली हमारी पीढ़ी न तो सुखी है और न ही सन्तुष्ट। हमें अपने बच्चों में योग को जीने के तरीके के रूप में आत्मसात करना चाहिए जो महान मानव जाति को फिर से स्थापित करेगा।’’