प्रो. (डॉ.) दिव्या तंवर
प्रो. सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुम्बई
चेयरपर्सन – दिव्य फाउंडेशन, नई दिल्ली
बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स – नमो स्टडीज सेन्टर
नई दिल्ली
भारत मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक केंद्र के रूप में उभर रहा है। कुशमैन और वेकफील्ड ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स के अनुसार अब यह चीन के बाद दूसरे स्थान पर है और अमेरिका से आगे निकल गया है। कई मोबाइल फोन, लग्जरी और ऑटोमोबाइल ब्रांड, देश में अपने मैन्युफैक्चरिंग आधार स्थापित कर चुके हैं या स्थापित करना चाहते हैं। भारत के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में साल 2025 तक यूएस डॉलर 1 ट्रिलियन पहुंचने की क्षमता है। भारत ने कुछ वर्षों में घरेलू उत्पाद के 25 प्रतिशत और 500 बिलियन डॉलर तक बढऩे का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में भारत का वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन में केवल 3.1प्रतिशत का योगदान है, जबकि चीन का 28.7 प्रतिशत और संयुक्त राज्य अमेरिका का 16.8 प्रतिशत है। भारत के लिए अपने मैन्युफैक्चरिंग उत्पादन में वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। ऑटोमोबाइल और इसके घटकों (EVs) से लेकर विमानन , कपड़ा तथा थर्मल पावर तक उच्च रोजगार और विकास क्षमता वाले प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की गई है।
भारत अधिक स्वचालित और प्रक्रिया संचालित मैन्युफैक्चरिंग की ओर बढ़ रहा है, उच्च अंत उपकरणों और मशीनरी की मांग बढ़ रही है। भारतीय मैन्युफैक्चरिंग उद्योग ने भारत के त्रष्ठक्क का 16-17 प्रतिशत कोरोना उत्पन्न किया और इसे सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक होने का अनुमान है।
इस उपलब्धि का श्रेय हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और उनकी सरकार द्वारा सक्रिय नीतियों को अपनाना को जाता है। ‘मेक इन इंडिया’ (GDP) पहल को आगे बढ़ाने के लिए, भारत सरकार ने PLI योजना , यूएस26.7 बिलियन डॉलर के प्रोत्साहन के साथ, 13 क्षेत्रों में लागू किया है।
साल 2030 तक, भारत संभवत: एक विश्वव्यापी मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बन सकता है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रति वर्ष $500 बिलियन से अधिक जोड़ सकता है। जैसा कि उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा इंगित किया गया है, भारत मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में निवेश के लिए सबसे आकर्षक स्थलों में से एक बन गया है।
प्रधान मंत्री ने ‘मन की बात’ और अन्य प्लेटफार्मों के माध्यम से युवाओं और छात्रों तक अपने दृष्टिकोण और भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग केंद्र बनाने की पहल के बारे में बताया है। सरकारी पहलों के अलावा, प्रधान मंत्री ने कल्पना की है कि भारत के लिए वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग गंतव्य बनने के लिए स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं के पक्ष में मानसिकता कैसे महत्वपूर्ण है। हमारे छात्रों के लाभ के लिए, विभिन्न प्लेटफार्मों पर उनके आउटरीच के कुछ हिस्सों को प्रस्तुत किया गया है।
मित्रों, पिछले वर्षों में हमारे त्योहारों के साथ देश का एक नया संकल्प भी जुड़ा है। आप सभी जानते हैं, यह है ‘वोकल फॉर लोकल’ का संकल्प। अब हम अपने स्थानीय कारीगरों, शिल्पकारों और व्यापारियों को त्योहारों की खुशी में शामिल करते हैं। 2 अक्टूबर को बापू की जयंती के अवसर पर हमें इस अभियान को और तेज करने का संकल्प लेना है। खादी, हथकरघा, हस्तशिल्प…इन सभी उत्पादों के साथ आपको स्थानीय सामान जरूर खरीदना चाहिए। आखिर इस पर्व का असली आनंद तब भी है जब सभी इसका हिस्सा बनें। इसलिए स्थानीय उत्पादों के काम से जुड़े लोगों को भी हमारा साथ देना होगा। त्योहार के दौरान हम जो भी उपहार देते हैं, उसमें इस प्रकार के उत्पादों को शामिल करना एक अच्छा तरीका है।
उन्होंने कहा, इस समय यह अभियान इसलिए भी खास है क्योंकि आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान हम भी आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं। जो सही मायनों में स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि इस बार खादी, हथकरघा या हस्तशिल्प के इन उत्पादों को खरीदने के लिए सभी रिकॉर्ड तोड़ दें।
हमने देखा है कि त्योहारों के दौरान पैकिंग और पैकेजिंग के लिए पॉलिथीन बैग का भी बहुत उपयोग किया जाता है। त्योहारों पर स्वच्छता का पालन करते हुए पॉलीथिन का हानिकारक कचरा भी हमारे त्योहारों की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमें स्थानीय रूप से बने गैर-प्लास्टिक बैग का ही उपयोग करना चाहिए। जूट, कपास, केले के रेशे और ऐसे ही कई पारंपरिक बैगों का चलन एक बार फिर से बढ़ रहा है। त्योहारों के अवसर पर इनका प्रचार-प्रसार करना हमारा कर्तव्य है, स्वच्छता के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण का भी ध्यान रखना।
‘मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे शास्त्रों में कहा गया है- ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’ अर्थात् दूसरों का भला करना, दूसरों की सेवा करना, दान करना जैसा कोई दूसरा धर्म नहीं है। हाल ही में देश में समाज सेवा के इस ज़ज़्बे की एक और झलक देखने को मिली। आपने यह भी देखा होगा कि लोग आगे आ रहे हैं और एक न एक टीबी रोगी को गोद ले रहे हैं, पौष्टिक आहार सुनिश्चित करने का बीड़ा उठा रहे हैं। दरअसल, यह टीबी मुक्त भारत अभियान का एक हिस्सा है, जिसका आधार जनभागीदारी है; कर्तव्य की भावना। सही समय पर सही दवाओं से, सही पोषण से टीबी का इलाज संभव है। मुझे विश्वास है कि जनभागीदारी की इस शक्ति से भारत निश्चित रूप से वर्ष 2025 तक टीबी से मुक्त हो जाएगा।’
भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए हमारे शैक्षणिक संस्थान, हमारे छात्र और हमारे युवा सबसे महत्वपूर्ण हैं। हमें अपनी शिक्षा को उद्योग से जोडऩे की जरूरत है। हमें इनोवेशन और एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देने की जरूरत है। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में अनुसंधान पर जोर देने की जरूरत है। इससे छात्रों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। भारत अभूतपूर्व आर्थिक विकास के पथ पर है।